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________________ चतुर्थ खण्ड : तृतीय अध्याय २३७ का कपड छान चूर्ण मिलावे। फिर सत्यानाशी के स्वरस को तीन भावना देकर २ रत्ती की गोलियां बना ले । माना १ से २ गोली। अनुपान-कागजी नीबू या जम्बोरी नीबू के रस या अदरक के रस के साथ दे । ( यो र) ३ श्वेत अर्क या करवीर मूल को दो रत्ती की मात्रा मे तण्डुलोदक से देना भी लाभप्रद होता है । इसको जड को अश्विनी नक्षत्र मे उखाडने का विधान है। ४ चातुर्थकारि रस (भै र ) मात्रा २ रत्ती। अनुपान चम्पा के पुष्प का रन ३ माशे या शेफाली का स्वरस ३ माशे और मधु ६ माशे। दिन में दो या तीन वार। ५ पेया-चाङ्गेरी (तिन पतिया ) की एक सहस्र पत्तियो को लेकर कपाय बनावे, फिर इस कपाय मे पेया विधि से चावल के कण डाल कर पेया बनावे । इसमे गोघृत डाल कर पिये तो चातुर्थक ज्वर नष्ट होता है। ६ धतूर के कोमल तीन पत्ते, गुड १ तोला और काली मिर्च ५ दाने मिला कर पीस कर गोली जैसा बना ले । ज्वर के आने से दो घटे पूर्व रोगी को खिला देना चाहिये । पीने के लिये उसे पानी नहीं देना चाहिये। अगर तुपा से अधिक व्याकुल होवे तो उसे दूध दिया जा सकता है। एक दिन के प्रयोग से ज्वर प्राय. ठीक हो जाता है। ७ कुटकी मूल को अर्कतीर मे भावित करके सेवन करना तृतीय और चातुर्थक दोनो मे लाभ करता है । धूप-ज्वर के पारी वाले दिन भृ गराज स्वरस मे काले किये हुए वस्त्र मे गुग्गुल और उलूक पक्षी की पखि को अच्छी तरह से बांधकर नि म अङ्गारे पर रख देना चाहिये। समीप मे रोगी को बैठा कर उसके धुएं से रोगो को धूपित करने से ज्वर का नाश होता है। विपम ज्वर मे देवव्यपाश्रय चिकित्सा का माहात्म्य--सभी विषम ज्वरो मे विशेषत तृतीयक तथा चातुर्थिक ज्वर मे आगन्तुक अर्थात् भूतादि का अनुबध पाया जाता है। अस्तु, केवल युक्तिव्यपाश्रय चिकित्सा से लाभ की परी आशा नही की जा सकती है उसमे दैवव्यपाश्रय अथवा आधिदैविक चिकित्सा का आश्रय लेना भी अवश्यम्भावी हो जाता है। एतदर्थ मत्रधारण, इष्ट देवता की उपासना, जप, होम, मगल कर्म, औषधि धारण, स्तोत्र पाठ प्रभृति कर्मों को करना चाहिये । सोम का पूजन, विष्णु का पूजन, ब्रह्मादि का पूजन लाभप्रद रहता है ।' १ कर्म साधारण जहयात् तृतीयकचतुर्थको। आगन्तुरनुवन्धो हि प्रायशो विपमज्वरे ॥ विष्णु सहस्रमूर्धान चराचरपति विभुम् । स्तुवन्नामसहस्रण ज्वरान् सर्वानू व्यपोहति ।। (चर चि ३)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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