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________________ २३० भिपकर्म-सिद्धि खिले हुए कमलो से युक्त वावलियो मे नाव पर रखना या छूटते हुए फुहारो से युक्त सुन्दर गृह मे। शरीर मे सफेद चदन का लेप किये हुए स्त्री का सम्पर्ण, मुक्ता की माला का धारण प्रभृति विहार दाह के शामक रूप मे कहे गये है। १३ अन्तक सन्निपात-सन्निपात की साघातिक अवस्था-जिसमे कोई उपचार लाभप्रद न सिद्ध हो तो अतक या नागक सन्निपात कहलाता है। इसमे युक्तिव्यपाश्रय चिकित्सा का आश्रय पूर्णतया निष्फल रहता है। ऐसी अवस्था में दैवव्यपाश्रय उपायो का अवलम्बन ही एकमात्र साधन शेप रह जाता है। ऐसी अवस्था में उपवास, उष्णोदक यूपादि का प्रयोग किचित्कर होता है। केवल एक मात्र भगवान् का भरोसा रह जाता है । अस्तु भगवदाराधना करनी चाहिये। क्योकि वही मृत्यु को जीत सकते है, उन्ही का नाम मृत्युंजय है । ( मृत्युजय अथवा महा मृत्युजय का जप प्रभृति उपायो का आश्रय लेना उचित रहता है ।) सन्निपात ज्वरी मे-सामान्य-पथ्य-पंचमुष्टिक यूप-जौ, वैर, कुलस्य, मूग और आँवला इनमे से प्रत्येक को एक एक ताला लेकर अष्टगुण जल (४० तोले ) में पाक करे और आधा गेप रहने पर उतार ले। यह पंचमुष्टिक यूप कहलाता है । यह त्रिदोपज ज्वरो मे लाभप्रद और हल्का पोपण के रूप में दिया जा सकता है। कुछ लोग मुद्गपर्णी, बालमूली या शुठी के योग से भी इस यूप को बनाते है । १ सान्निपातिक ज्वर में रस के योग श्वसनक ज्वर (न्युमोनिया तथा प्लुरिसी) में १ ज्वरायभ्र-शुद्ध पारद, शुद्ध गवक, अभ्रभस्म, तान्नभस्म, गुद्ध वत्सनाभचूर्ण प्रत्येक एक तोला, शुद्ध धतूरे का वीज २ तोला और त्रिकटुचूर्ण ५ तोला। प्रथम पारद एव गंधक की कज्जली बनाकर शेप द्रव्यो का कपडछान चूर्ण मिलाकर जल मे घोटकर २-२ रत्ती की गोलियां बना ले। मात्रा १-२ गोली प्रति चार घटे पर दिन मे कई वार । अनुपान-अदरक, तुलसी का रस एव मधु । इस योग मे कफनि सारण के विचार से प्रतिमात्रा मे यवक्षार २ रत्ती और शुद्ध टकण या शुद्ध नरसार भी २ रत्ती मिलाकर दिया जा सकता है। जैसे ज्वरार्यभ्र २ रत्ती, शुद्ध टकण २ रत्तो, यवक्षार २ रत्ती मिश्रित १ मात्रा । हिगुकपूरवटी-वी मे भुनी होग १ भाग, कपूर १ भाग और कस्तूरी १ यवकोलकुलत्थाना मुद्गामलकशुण्ठयो । एकैकं मुष्टिमाहृत्य पचेदष्टगुणे जले। पञ्चमुष्टिक इत्येप वातपित्तकफापहः । शस्यते गुल्मगले च श्वासेका से च शस्यते ।।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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