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________________ (२४ ) का दिया जा रहा है। यह विरुद्धाशन है इससे रोग पैदा होने की संभावना रहती है, परन्तु पाश्चात्य देशों में मछली और दूध के योग से बना जादभोज्य पदार्थ पाये जाते है । उन व्यक्तियों को उसले कोई हानि भी नही होनी । इसका कारण क्या है। उत्तर ऊपर में बताया जा चुका है-पुन यही लोग में उसका उद्धरण दिया जा रहा है . साम्यतोऽल्पतथा वापि दीमाग्नेस्तम्णस्य च । स्नेहव्यायामवलिनो विरुद्ध वितथ भवेत् ।। आयुर्वेद प्रगति का समर्थक (Progressive) आयुर्वेद रूढिवादी नहीं है । उसकी आधार-शिला मान्य, सनानन, विश्वजनीन या सार्वभौम सिद्धान्तों के ऊपर रखी गई है। वह सदा से प्रगति का समर्थक रहा है। उसकी चिकित्सा की स्छ पनिा काल नम अब्सोलीट (Obsolete ) हो गई है, फिर भी वह सम्पूर्णतया असोलीट नहीं है। क्योकि वह अतिप्राचीन काल से अर्थात सभ्यता के आदिन काल से आज के युग तक किसी न किसी रूप में समाज-सेवा करता आ रहा है। इतना ही नहीं उनसे युगानुरूप परिवर्तन भी होते आये हैं । यही कारण है कि अथर्ववेद के काल में जो चिकित्सा की पद्धति रही वह संहिताकाल (चरक-सुश्रुतादि) में नहीं रह पाई उसमे बहुत विकास हुआ, नये-नये रोगों का प्रवेश नई-नई औपधियों का, और निदान-चिकित्सा के नये-नये साधनों का अंतर्भाव किया गया। संहिता-काल में जो चिकित्सा की पद्धति रही परवर्ती युग मे संग्रह-काल में वह नही रह पाई। उसमे निदान और चिकित्सा संबन्धी आमूल परिवर्तन हुए। चिकित्सा के क्षेत्र मे नये-नये योगों की कल्पना हुई। रस-विद्या ने पूरे शास्त्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। चिकित्मा केवल आध्यात्मिक योग, वानस्पतिक और जान्तव पदार्थों तक ही सीमित नहीं रह गया वल्कि खनिज पदाथो का रसोपरस, लोहोपलौह, विपोपविषों का बहुलता से प्रयोग होने लगा। रसौपधियों के प्रवेश ने चिकित्सा जगत् में एक नया क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया। उसने त्रिदोषों के अंशांश क्ल्पना दुरुहता को भी धका दिया, अरुचिकर बडी मात्रा की काष्टोपधियों का या उनसे निर्मित घृत, तैल, आसवारिष्ट, गुटिका आदि का उपहास करते हुए, अल्पतम मात्रा में प्रयुक्त होने वाली और शीघ्र लाभ पहुंचाने वाली रस योगों की व्यवस्था होने लगी. अल्पमात्रोपयोगित्वादरुचेरप्रसंगतः। क्षिप्रं च फलदायित्वादौपधिभ्योऽधिको रसः।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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