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________________ २२७ चतुर्थ खण्ड : द्वितीय अध्याय १० कर्णिक सन्निपात-इस प्रकार मे कान के मूल के पास मे एक गाँठ या सूजन पैदा होती है। इसलिये कर्णमूल सन्निपात भी कहा जाता है। यह अवस्था मुस की सफाई (गर्मजल या लवण विलयन या 'डेटाल' या 'सेवलान' के पानी से ) न रखने की वजह से उत्पन्न होती है जिससे कर्णमूल ग्रथि ( Parotid Gland ) मे व्रण शोफ पैदा हो जाता है। यह एक मन्निपात ज्वर का आम उपद्रव है जो ज्वर के आदि मे, मध्य मे या अन्त मे रोगी की जीवनीय शक्ति ( Vitality) के ऊपर पैदा हो सकता है। प्रारम्भ मे रोगी की जीवनीय शक्ति या बल अधिक होता है अस्तु शोथ साध्य रहता है । मध्य में मध्यम वल रहता हे अस्तु रोग कृच्छ्र साध्य होता है । और अन्त में जव वल, जीवनीय शक्ति या रोग की प्रतिकारक शक्ति बहुत कम हो जाती है तो शोथ का उपशम कठिन होकर रोग असाध्य हो जाता है। जीवनीय शक्ति के अनुसार प्रारभ का साध्य, मध्य का कृच्छ साध्य तथा ज्वर के अत मे होने पर असाध्य माना जाता है। यदि ज्वर के अतमे कर्णमल शोथ हो तो कोई रोगी कभी कभी वच जाता है । प्रारभ मे रोगी की जीवनीय शक्ति या वल अधिक होता है अस्तु गोथ साध्य रहता है । मध्य में मध्यम वल रहता है अस्तु रोग कृच्छ्रसाव्य होता है। और अत मे जव वल, जीवनीय शक्ति या रोग की प्रतिकारक शक्ति बहुत कम हो जाती है तो शोथ का उपशम कठिन होकर रोग असाध्य हो जाता है। ज्वरादि मे होने वाले कर्णमूल शोथ को सज्वर पापाण गर्दभ रोग या Mumps कहा जा सकता है। जो एक मुखमाध्य मर्यादित रोग है और एक सप्ताह या दस दिनो मे अच्छा हो जाता है। उपचार-सन्निपात ज्वर के अन्य उपचारो के साथ साथ निम्नलिखित विशिष्ट उपचारो को वरतना चाहिए । रोगी को मुख सफाई (Mouth hygeine ) पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिये। गर्म जल, नमक मिश्रित गर्म जल, 'डेटाल' या 'सेवलान' के पानी से' या कषायो का कवल ( कुल्ली ) बीच वीच में ज्वर काल मे कराते रहना चाहिये। यदि शोफ सामान्य हो तो प्रारभिक उपचार में कई प्रकार के लेप है उन्हे पानी मे पीसकर गुनगुना करके लेप करना चाहिये। जोक लगा कर रक्तावसेचन करना चाहिये। यदि शोफ का शमन इन उपायो मे न हो और उसमे पाक या पूयोत्पत्ति न हो जावे तो शस्त्र क्रिया से चीर लगा कर मवाद (पूय ) को निकालना चाहिये । पश्चात् पूय के निर्हरण १ सन्निपातज्वरस्यान्ते कर्णमूले सुदारुण ।शोफ सजायते तेन कश्चिदेव प्रमुच्यते । ज्वरादितो वा ज्वरमध्यतो वा ज्वरान्ततो वा श्रुतिमूलशोथ । क्रमेण साध्य खलु कृच्छ्रसाध्यस्ततस्त्वसाध्य कथितो भिपग्भि ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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