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________________ चतुर्थ खण्ड : द्वितीय अध्याय २२५ जीरक ) का कपडछन महीन चूर्ण बनाकर उसका उद्धूलन (चूर्ण का रगडना -Dusting) करना चाहिये । अथवा भुनी हुई कुलथी या रहर के चूर्ण ( सत्त ) का गरीर मे मालिश करनी चाहिये अथवा कट्फल के चूर्ण की हाथ, पैर और तलवे मे हल्के हाथो से मालिश करनी चाहिये । इससे स्वेद का शोपण होता है और शरीर गर्म हो जाता है, शीताङ्ग कम हो जाता है। तन्द्रिक सन्निपात-विषमयता के कारण यह भी उपद्रव होता है, जिसमे रोगी अर्द्धनिद्रित अवस्था में पड़ा रहता है । अस्तु इस अवस्था मे अन्य उपचारो के साथ उसकी तद्रा को दूर करने के लिये कई प्रकार के नस्यो और अजनो का प्रयोग शास्त्र में पाया जाता है। उदाहरणार्थ क गुण्ठी, पिप्पली, काली मिर्च इन द्रव्यो को सम मात्रा मे लेकर महीन चूर्ण करके अगस्त्य के फूल के रस मे पीसकर उसका रस नाक मे टपकाने से या चूर्ण का नस्य देने से कार्य होता है। ____ख घोडे की लार, सेधा नमक, कपूर, मैनसिल, पिप्पली और मधु का अजन लगाने से सन्निपातज तन्द्रा एव निद्रा दूर होती है। ३ प्रलापक सन्निपात-सन्निपात या तीव्र ज्वरो मे यह एक प्रधान उपद्रव पाया जाता है। विषमयता की अधिकता की वजह से रोगी असम्बद्ध वातें करता है, अटपट बकता है, चिल्लाता है और शय्या से उठता और भागता है। प्रलाप मद या तीव्र स्वरूप भेद से कई प्रकार का हो सकता है । इस अवस्था मे मस्तिष्क पर सशामक प्रभाव दिखलाने वाले योगो का उपयोग लाभप्रद होता है। अस्तु, तगरादिकषाय-तगर, पित्तपापडा, अमलताश, नागरमोथा, कुटकी, लामज्जक, असगध, ब्राह्मी, द्राक्षा, श्वेत चदन, दशमूल की औपधियां तथा शखपुष्पी इन द्रव्यो का क्वाथ बना कर देना शीघ्र लाभप्रद होता है। ४ रक्तप्टीवी सन्निपात-इस अवस्था मे रकष्ठीवन (Rusty sputum) पाया जाता है, कई बार तीन श्वसनक ज्वर (Acute pneumonia) यह लक्षण प्रमुखतया मिलता है। चिकित्सा मे १ रोहिषादि कषायरोहिसघास, अडूसा, पित्तपापडा, फूल प्रियङ्ग तथा कुटकी इन सब द्रव्यो को सममात्रा में लेकर क्वाथ विधि से क्वाथ बनाकर मिश्री डाल कर पीना।। पद्मकादि कपाय-पद्मकाष्ठ, लाल चदन, पित्तपापडा, नागरमोथा, जाति ( चमेली का फूल), जीवक, सफेद चदन, सुगंधवाला, मुलेठी और नीम की पत्ती के कषाय का उपयोग। ५ भग्ननेत्रचिकित्सा-सन्निपात की इस अवस्था में विपमयता की अधिकता से रोगी निद्रित सदृश अधखुले नेत्र से स्तब्ध पड़ा रहता है। होग में १५ भि० सि०
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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