SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिषक्कर्म-सिद्धि सावूढाना — इसका वर्णन आयुर्वेदिक प्राचीन ग्रंथो मे नही पाया जाता है । यूनानी चिकित्सको के सम्पर्क से इस का प्रवेश ज्वरकाल के पथ्य के रूप मे लोक में हुआ है | साबूदाना के पेडका फल होता है। यह वडा लघु, सुपाच्य एव पित्तशामक होता है, ज्वरकाल मे इसका भी मण्ड बनाकर दिया जा सकता है । लाजमण्ड या पेया -- इसका वर्णन विस्तार से ऊपर हो चुका है । यहाँ पर एक अधिक व्यावहारिक विधि का उल्लेख मात्र करना ही लक्ष्य है । धान के लावा को या भुने चावल को चौदह गुने जल मे उबाल कर छान लेवे । इसे लाजमण्ड कहते है । यह भी कफपित्तशामक, तृपाशामक और ग्राही होता है । दूध का पानी - दूध को गर्म करके उसमे नीबू का रस या इमली डालकर दूध को फाड देवे, पञ्चात् छेने को पृथक् करके केवल पानी का भाग रखले और रोगी को बीच-बीच में पिलाता चले । यह नित्य ताजा बनाना चाहिये। यह पित्त'शामक हल्का पथ्य है । जव दोप प्रवल हो, रोगी की अग्नि बहुत मद हो, मन्थर ज्वर या सान्निपातिक ज्वर हो तो यह पथ्य उत्तम रहता है । २०८ दूध - प्राचीन ग्रंथकारो ने नव ज्वर में दूध का निपेध किया है। नवज्वरी को पथ्य रूप में दूध नही देना चाहिये । इतना ही नही ओषधि के देने की भी व्यवस्था एक सप्ताह तक ज्वर मे नही की है । परन्तु व्यवहार मे औषधि भी दी जाती है और दूध का पथ्य भी । वास्तव मे औषधि का निपेध काष्ठीपधियो के अर्थ में है । 'आम दोप वाले तरुग ज्वर मे भेषज के प्रयोग से ज्वर और भी वढ जाता है' 'भेषजं ह्यासदोपस्य भूयो ज्वलयति ज्वरम् ।' भेषज का अभिप्राय काष्ठोपधियो से बने, देर में पचने वाले, गुरु द्रव्य जैसे - क्वाथ, चूर्ण, कल्क आदि से हैं क्यो कि ज्वर में अग्नि मद हो जाती है, आमदोप प्रवल रहता है अस्तु इन औपचियो के पचाने की क्षमता ज्वरित की अग्नि मे नही रहती है, परिणाम स्वरूप आमदोप वढ जाता है, ज्वर तेज हो जाता है । अस्तु, उपवास कराना ही उत्तम उपाय रहता है । जवसे चिकित्सा मे रस के योगो का प्रयोग होने लगा है, भेपज निपेव का प्रश्न ही नही उठता । क्योकि ये अल्प मात्रा मे प्रयुक्त होती है । साथ ही तीव्र पाचक होती हैं अस्तु इनका विधान किया जा सकता है। ये ओपधियाँ अधिकतर विपो के सयोग से निर्मित होती है अस्तु विपन पथ्य क्षीर (दूध ) का निषेध भी नव ज्वर मे अनुचित प्रतीत होता है । अस्तु रसौपधियो के प्रयोग काल मे नव ज्वर मे यदि रोगी की अग्नि अनुकूल हो और रोगी को सात्म्य हो तो दूध पथ्य रूप मे दिया जा सकता है । दूध गाय का उत्तम होता है । परन्तु अतिसार हो तो ज्वरित को यजा-क्षीर ( बकरी का दूध ) भी दिया जा सकता है | दूध को गर्म करके ठंडा करके या
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy