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________________ ( २१ ) के दो उपाय है-वैयक्तिक (Peasonal) तथा सामूहिक या सामाजिक (Public) इनमे वैयक्तिक आचारों का सर्वोत्तम उपदेश आयुर्वेद से प्राप्त होता है। दोपा. क्षीणाः वृयितव्या , कुपिताः प्रशमयितव्याः, वृद्धा निहर्तव्या', समाः परिपाल्या इति सिद्धान्त । (सु० चि० ३३) इस सिद्धान्त के अतिरिक्त तो चिकित्सा-जगत् में कुछ शेप रह नहीं जाता। इन सार्वभौम सिद्धान्तों मे सभी तत्व सूत्र रूप में निहित है। तद्पता ( Crudopathy )-आयुवेद मे सौम्य तथा उग्र दोनों प्रकार के योग उपलब्ध होते है । सोम्य काष्ठौपधियों से प्रारम्भ करके, खनिज धातूपधातु, वानस्पतिक विपोपविप तथा विभिन्न जान्तव विप जिनमें साधारण गोरोचन और मत्स्यपित्त से लेकर उग्र से उग्र सर्पविप का भी प्रयोग होता है। फिर भी औपधि की सौम्यता, उसकी सुरुचिपूर्णता और सुस्वादुता के ऊपर वैद्यों का विशेष ध्यान रहता है। आयुर्वेद की औपधियों की सर्वाधिक विशेषता उनका तद्रूप (Crude form ) प्रयोग है ! चीनी, मिश्री प्रभृति संस्कृत ( Refined ) मिठाइयों के रहते भी गुढ की मिठास की भी आवश्यकता पड़ती है। आज के वैज्ञानिक 'क्रूड फार्म' में प्रयुक्त की जाने वाली औपधियों का उपहास करते हैं। उदाहरणार्थ एक सर्पगंधा का प्रयोग ले। सर्पगंधामूल सम्पूर्ण चूर्ण का प्रयोग कई शताब्दियों से वैद्य उन्माद और रक्तवात ( Hypertension ) आदि मे करते चले आ रहे है जब से विश्व के आधुनिक वैज्ञानिकों को इस औषधि का पता चला नित्य नये अनुसंधान चलने लगे। उन्होंने वैज्ञानिक शोधों के आधार पर कई क्षार-तत्वों ( Alkaloids ) का पता लगा लिया। पुनः उसमे उस विशिष्ट तत्त्व का भी पता लगाया जिसका सीधे उच्चरक्त-निपीड पर प्रभाव पडता है। इल तत्व की अल्पतम मात्रा कम से कम समय से निपीड को नीचे कर देती है। इस तत्त्व का नाम है Reserpine 'रिसर्पाइन' । २५ मि० ग्राम की एक गोली वह कार्य कर सकती है जो झूड सर्पगधा का २ माशा चूर्ण भी नहीं कर पाता। गुण का वर्णन तो हो चुका अव जरा दूसरी दृष्टि से विचार करे तो उसमे गुणों की अपेक्षा दुर्गुण कई गुने बढ़े मिलते है। इसकी विषाक्तता बडी तीव्र है। प्रयोग काल में मात्रा निर्धारण ( Dosage) अवधि ( Duration ) रक्तनिपीडलेखन ( Blood Pressure Recording ) की आवश्यकता पदे-पदे पडती है। रोगी मे लम्बे समय तक निरन्तर प्रयोग करने से जीवन से भी रोगी को हाथ धोना पडता है। परन्तु ऋडफार्म मे प्रयोग करने से न प्रयोग काल और न पश्चात् काल मे ही किसी प्रकार की हानि की सम्भावना रहती
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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