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________________ १६८ 'ज्वरित को उपवास कराना चाहिये । १ अन्यत्र लिखा है - आँख, पेट के रोग, प्रतिश्याय, व्रण तथा नव ज्वर ये रोग ( Acute Inflamatory state ) प्राय पाँच दिन के उपवास से ही ठीक हो जाते है । भिषक्कर्म - सिद्धि अक्षिकुक्षिभवा रोगाः प्रतिश्यायव्रणज्वराः । पचैते पञ्चरात्रेण रोगा नश्यन्ति लङ्घनात् ॥ 1 हारीत सहिता मे लघन की अवधिसूचक एक बचन पाया जाता है "लघनीय ज्वर मे लधन दोष और बल के अनुरूप कराना चाहिये । कही तो एक दिन के. लघन से ही काम चल जाता है, कही पर दो दिनों के लघन से काम पूरा हो जाता है, क्वचित् तीन या छ' दिनो तक ज्वर में उपवास कराने का विधान है ।" सामान्यतया ज्वरो मे इतना लघन पर्याप्त होता है । उसके बाद लघुभोजन देना आवश्यक हो जाता है । लघन की अधिक अवधि केवल सान्निपातिक ज्वरो मे बतलाई गई है। क्योकि इन ज्वरो मे दोषो की संसक्ति एवं आम दोप ast प्रबल होता है अतएव उनमे " जब तक रोगी आरोग्य लाभ न करले "यावदारोग्यदर्शनात्” तब तक उपवास कराने का 4 विधान है। इस प्रकार T लघन या उपवास का सर्वाधिक महत्त्व सन्निपात ज्वरो मे ही होता है । A + लङ्घनं लङ्घनीयानां कुर्याद्दोपानुरूपतः । त्रिरात्रमेकरात्रं वा षडरात्रमथवा ज्वरे ॥ लंघन के गुण - नव ज्वर मे वात-पित्तादिक दोप तथा शरीर की समस्त पाचक अग्नियो की स्थिति तथा प्रमाण व्यवस्थित नही होता है । लंघन दोषो को पचाकर ठीक-ठीक अपने स्थानो पर व्यवस्थित कर देता है । लघन से ज्वर का वेग कम हो जाता है, अग्नि दीप्त होती है, भोजन करने की इच्छा जागूत होती है, रुचि बढती है और शरीर हल्का हो जाता है । २ - सम्यक् लंघन के लक्षण - अपानवायु-मूत्रपुरीष का ठीक समय से आना, गात्र की लघुता, हृदयका भार एव उपलेप से रहित का अनुभव होना, डकार का आना, कठ एव मुख की शुद्धि, तन्द्रा एव थकावट का न अनुभव - १. प्राणाविरोधिना चैन लंघनेनोपपादयेत् । बलाघिष्ठानमारोग्य यदर्थोऽय क्रियाक्रम ॥ ( चचि ३ ) दोषेण भस्मेनेवाग्नो छन्नेऽन्न न विपच्यते । तस्मादादोपपचनाज्ज्वरितानु- पवासयेत् ॥ ( वा चि १ ) २. लक्षणैः क्षपिते दोपे दीप्नेऽग्नौ लाघवे सति । स्वास्थ्यं क्षुत्तृड् रुचिः पक्तिर्वलमोजश्च जायते ॥ ( अ हृ १ )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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