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________________ प्रथम अध्याय बर के पूर्वरूप में उपक्रम-ज्वर में सामान्य तथा विशिष्ट पूर्वरूपो के अनुसार निम्नलिखित उपक्रम करने चाहिये । लंघन या लघु भोजन-यदि कफ-पित्त या प्रतिश्याय आदि का आभास हो तो उपवास तथा वात-पित्त के दोपो का आभास हो तो लघु भोजन ( मण्ड-पेया-विलेपी प्रभृति ) देवे । विशिष्ट पर्वरूपावस्था मे गोघत या वातघ्नोपधि से सिद्ध घृत गर्म कर पतला कर पिलावे । पंत्तिक मे विरेचन देवे तथा श्लैष्मिक मे हल्का वमन करावे । द्वन्द्वज मे दो दो दोपो के अनुमार उपचार तथा त्रिदोपज मे तीनो दोषो का उपचार यघावश्यक करे। ज्वर मे उपक्रम या चिकित्सा-सूत्र-ज्वर की चिकित्सा मे सर्वप्रथम विचार इस बात का करना होता है कि ज्वर नव या तरुण है अथवा पुराण या जीर्ण । ज्वर की अवधि ( Duration ) से इसका निर्णय आसानी से किया जा सकता है। ज्वरोत्पत्ति से लेकर सात दिनो तक ज्वर की तरुणावस्था कहलाती है। फिर सातवें दिन से लेकर वारहवें दिन तक मध्यमावस्था तदनन्तर ज्वर की पराणावस्था मानते है। तत तीन सप्ताह के पश्चात् जब ज्वर का वेग कम हो जाता है, प्लीहा की वृद्धि और अग्निमाद्य पैदा हो जाता है। इस अवस्था को जीणं ज्वर कहते है ।२ ___ज्वर की चिकित्सा में दूसरा विचार आम, पच्यमान तथा निराम प्रभति लक्षणो की तीव्रातीव्रता के ( Intensity or severity of १ पूर्वरूपे प्रयुञ्जीत ज्वरस्य लघु भोजनम् । लखनञ्च यथादोपं विशेपे वातिके पुन ॥ पाययेत्सपिरेवाच्छ पैत्तिके तु विरेचनम् । मृदु प्रच्छर्दन तद्वत् कफजे तु विधीयते । द्वन्द्वजे तु द्वय कुर्याद् बुद्ध्वा सर्वं तु सर्वजे ॥ २ आसप्तरात्रं तरुण ज्वरमाहुर्मनीषिणः । मध्य द्वादशरात्रन्तु पुराणमत उत्तरम् ॥ त्रिसप्ताहे व्यतीते तु ज्वरो यस्तनुता गत । प्लीहाग्निसाद कुरुते स जीर्णज्वर उच्यते ।।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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