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________________ १६० - भिषक्कम-सिद्धि गुरुमधुररसाति स्निग्धदुग्वेक्षुभक्ष्यवदधिदिननिद्रापूपसर्पिःप्रपूरैः । तुहिनपतनकाले श्लेष्मणः संप्रकोपः - प्रभवति दिवसादी भुक्तमात्रे वसन्ते ।। कफ के कार्य या लक्षण-पेट का सदा भरा हुआ जान पडना, भूख सदा निद्रा के समान मालूम होना, गुरुता, निश्चलता, गीला कपडा ओढे हुए के ममान प्रतीत होना, मला का विशेष वनना, चिकनाहट, अपच, मुंह में जैसे कोई वस्तु लिप्त हो ऐसा जान पडना, ठडक लगना, खुजलाना, मुख या नाक से नाव, किसी कार्य को देर से करना, गोथ का होना, निद्राधिक्य, मुँह का स्वाद मीठा या नमकीन, वर्ण का श्वेत होना, सदा मालस्य का लगा रहना ये लक्षण कफ के प्रकोप मे पाये जाते है। तृप्तिस्तन्द्रा गुरुता स्तमित्यं कठिनता मलाधिक्यम् । स्नेहापक्त्युपलेपा शैत्यं कण्डू: प्रसेकश्च ।। चिरकत त्वं शोथो निद्राधिक्यं रसौ पटुस्वादू । वर्णः श्वेतोऽलसता कर्माणि कफस्य जानीयात् ॥ कफोपक्रम-विधिपूर्वक तीक्ष्ण वमन तया तीक्ष्ण रेचन कराना, स्त-अल्पतीक्ष्ण एव उष्ण वीयवाला तथा कटु-तिक्त-कपाय रम प्रधान भोजन, पुराना मद्य, स्त्रीप्रसग, विशेष जागरण, अनेक प्रकार के व्यायाम, परिश्रम, चिन्तन, रूखा उत्सादन, विना तेल के देह दबवाना, वमन करना, दाल के यूप का सेवन, चर्वी नागक औषधियो का उपयोग, धूमपान, उपवास, गण्टूप और आरामतलबी का परित्याग ये सव कफके उपक्रम है । श्रेष्मणो विधिना युक्तं तीक्ष्णं वमनरेचनम् । अन्नं रूक्षाल्पतीक्ष्णोणं कटुतिक्तकपायकम् ॥ दीर्घकालस्थितं मद्यं रति प्रीतिः प्रजागरः। अनेकरूपो व्यायामश्चिन्ता रूझविमर्दनम् ।। विशेपाद् वमन यूपः क्षौद्रं मेदोनमीपधम् । धूमोपवासगण्डूपनिःसुखत्वं सुखाय च ।। द्विदोप तथा त्रिदोप स्कन्ध-कोपकलक्षण-प्रकुपित द्विदोप या त्रिदोष के प्रकोप के कारण एव लक्षणो के लिये दो या तीन दोपो के संसर्ग होने पर उन दोनो या तीना दोपो के प्रपित होने पर दोनो या तीनो दोपी के अनुसार लक्षण एक साथ मिलते हुए पाये जाते है। द्विदोपलिङ्गसंसर्गः सन्निपानस्त्रिलिङ्गकः।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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