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________________ १८६ भिषकर्म-सिद्धि न चिकित्साशाचिकित्सा च तुल्या भवितुमर्हति । विनापि क्रियया स्वास्थ्यं गच्छतां पोडशाशया ।। आतङ्कपङ्कमन्नानां हस्तालम्बो भिपग्जितम् । जीवतं म्रियमाणानां सर्वेपामेव नौपधात् ।। एतद्वि मृत्युपाशानामकाण्डे छेदनं दृढम् । रोगात् त्रासितभीतानां रक्षासूत्रमसूत्रकम् ॥ (वा ३ ४०) तृतीय अध्याय सामान्योपक्रम-जैसा कि ऊपर मे बतलाया जा चुका है कि दोपो की विपमता से रोग होते है । दोषो की विषमता तीन प्रकार की होती है क्षयः स्थानञ्च वृद्धिश्च दोपाणां त्रिविधा गतिः दोपो के क्षीण होने, बढने या स्थानान्तर-मन से भिन्न-भिन्न रोग उत्पन्न होते है । एतदर्थही आचार्य ने उपदेश किया है कि क्षीण हुए दोषो को वढावे, बढ़े हुए दोपो का ह्रास न करे, स्थानान्तर मे गये दोपो को अपने स्थान पर ले आवे और समान दोपो का पालन करते हुए चिकित्सा करनी चाहिये। दोपानुसार एकैकश इनके उपचार विधियो का वर्णन समासत किया जा रहा है। वातस्कन्ध वायु के गुण-रूक्ष, शीत, लघु, सूक्ष्म, चल, विशद और खर इन गुणो से वायु युवत रहता है । इनके विपरीत अर्थात् स्निग्व, उष्ण, गुरु, स्थूल, स्थिर, पिच्छिल और श्लक्ष्ण गुण वाले द्रव्यो के उपयोग से शान्त होता है । रूक्षः शीतो लघु. सूक्ष्मश्चलोऽथ विशद. खर । विपरीतगुणैव्यैर्मारुतः संप्रशाम्यति ॥ वायु के प्रकोप के कारण व्यायाम, अपतर्पण, गिरना, टूटना, धातुक्षय, अधिक जागरण, मूत्र-पुरीपादि वेगो का रोकना, अतिशोक, ठड, वहुत डरना, रुक्ष और क्षोभकारक द्रव्य, कपाय, कटु एवं तिक्त द्रव्य प्रभृति कारणो से तथा वर्षाऋतु, भोजन के पचने के वाद तथा अपराहुकाल मे वायु कुपित होती है। व्यायामादपतपणान् प्रपतनाद् भगात.क्षयाज्जागराद् वेगानाञ्च विधारणादतिशुचः शैत्यादतित्रासतः ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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