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________________ ( १६ ) " और स्वेदन क्रियाओं का अन्तिम लक्ष्य व्यक्ति को कर्म के लिए तैयार करना है इसीलिए इन दो क्रियाओं का समावेश पूर्व कर्म ( Preparation ) मे हो जाता है । इन क्रियाओं से तोतस मे लीन ( चिपके हुए ) दोष ढीले पड जाते हैं और वहिर्मुख हो जाते है फिर पंचकर्मों के द्वारा उनका निर्हरण सुविधापूर्वक किया जा सकता है । यदि दोष श्लेष्म-प्रधान है अर्थात् पचनसंस्थान के ऊपरी भाग मे ( आमाशयादि ) अथवा श्वसनसंस्थान ( फुफ्फुसादि) मे है तो उसका निर्हरण वमन के द्वारा सम्भव है - इस प्रकार का विकार प्रायः शीत ऋतुओं के अनन्तर वसंत ऋतु में पाया जाता है । अतएव वसंत ऋतु मे यदि व्यक्ति और समाज को स्वस्थ रखना है तो उसमे वमननामक-पंचकर्म के द्वारा क्रिया करके उन्हें रोगरहित किया जा सकता है । विरेचन -- पचन संस्थान के अधोभाग का शोधन जिसमे प्राय. ज्वर प्रभृति पित्ताधिक्य के लक्षण उत्पन्न होते हैं । विरेचन क्रिया के द्वारा किया जा सकता है । इस प्रकार के रोगः प्रायः वर्षा ऋतु के अनन्तर शरद ऋतु मे उत्पन्न होते है ( मलेरिया आदि ) । इसलिए व्यक्ति या समाज की रक्षा की दृष्टि से उनमें भविष्य मे ज्वर प्रभृति रोग शरद ऋतु मे न हो शरद ऋतु के प्रारम्भ में ही विरेचन करा देना चाहिए । वस्तियों का प्रयोग वायु के शमन मे सर्वोत्तम माना गया है । प्राय वायु के रोग ग्रीष्म ऋतु के वाद ( गठिया, आमवात, वातरक्त आदि ) वर्षा ऋतु मे होते है । इस ऋतु मे वस्तियों का बहुल प्रयोग से व्यक्ति या समाज को भविष्य मे होने वाले वायु के रोगों से रक्षा की जा सकती है। पंचकर्मो के सम्बन्ध मे सदा एक ही विशेष कर्म करना होगा ऐसा नियम नही है दोपों के निर्हरण के लिए कभी एक कर्म, कभी दो, क्वचित् तीन या पांचों की भी आवश्यकता पड सकती है और वैद्य का कर्तव्य है कि वह व्यक्ति की अवस्था विशेष का विचार करते हुए जितने कर्मों की आवश्यकता प्रतीत हो उनसे शुद्धि करे | कर्मणा कश्चिदेकेन द्वाभ्यां कश्चित् त्रिभिस्तथा । विकार साध्यते कश्चिचतुर्भिरपि कर्मभि ॥ ( सु० ) वर्ष मे तीन वडी ऋतुएँ बीतती है । इनमें हेमन्त ऋतु के दोष सचय को वसंत में, ग्रीष्म ऋतु के दोष-संचय को वर्षा काल मे एव वर्षा के दोप- सचय को शरद् ऋतु मे भलीभाँति निकाल देने से व्यक्ति मे ऋतुजनित विकार ( Seasonal disease ) नही होने पाते । हैमन्तिकं दोपचयं वसन्ते प्रवाहयन् यैष्मिकमभ्रकाले | घनात्यये वार्षिकमाशु सम्यक्प्राप्नोति रोगानृतुजान्न जातु || ( च० ) इस प्रकार यह पंचकर्म का अध्याय भी आधुनिक जनस्वस्थवृत्त के लिए
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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