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________________ १७२ भिपकर्म-सिद्धि आचार तीन प्रकार के होते हैं--(क) शारीरिक (ख) वाचिक (ग) मानसिक । इनमें उत्क्षेपण, अवक्षेपण प्रभृति कर्म शारीरिक आचार, स्वाध्याय वाचिक एवं संकल्प, चिन्तन आदि व्यापार मानसिक माचार है। __ आहार :-पथ्य की वडी महिमा मास्त्र मे वतलाई गई है। लोलिम्बराज कृत वैद्यजीवन में तो यहां तक लिखा है कि यदि रोगी पथ्य का विधिवत् सेवन करे तो उमको औषध के सेवन की कोई आवश्यकता नहीं है । अर्थात् वह पथ्य से ही अच्छा हो जायेगा। इसके विपरीत यदि वह पथ्य से न रहे, तब भी उसको औषधि सेवन की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योकि अपथ्य से वह अपना रोग उढा लेगा । फलत. बोषधि सेवन का कोई भी फल नहीं होगा। पथ्ये सति गदातस्य किमोषधनिपेवणैः । पथ्येऽसति गदातस्य किमीपधनिपेवणे ।। आहार प्राणियो के वल, वर्ण और ओज का मूल है । आहार के सेवन से ही प्राणी जोवित रहता है, उसका बल बढता है, शरीर का वर्ण और तेज अक्षुण्ण बना रहता है। हिताहार और विहार पर ही उसकी कार्यक्षमता निर्भर रहती है । बाहार के अभाव में इन सभी सद्गुणो का ह्रास पाया जाता है । अस्तु बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिये कि चाहे रोग मानसिक हो या शारीरिक सत् वृद्धि से विचार कर हित और अहित (पथ्य और अपथ्य ) का ध्यान रखते हुए, धर्म-अर्थ और काम दृष्टि से जो लाभप्रद हो उस प्रकार के आहार-विहार का सेवन करे तथा जो अहित करने वाले हानि-प्रद हो उनका परित्याग करने का प्रयत्न करे । तद्विद्य मानस एव शारीर व्याधि के ज्ञाता अर्थात् वैद्यक शास्त्र अथवा उसके माता की सलाह लेकर उसके अनुसार आहार-विहार के अनुष्ठान का प्रयत्न करे । इस तरह बात्मा, देग, कुल, काल, वल तथा गक्ति का सम्यक् जान करके तदनुकूल आहार-विहार रखने का प्रयत्न करना चाहिये। तत्र बुद्धिमता मानसव्याधिपरीतेनापि सता वुद्धया हिताहितमवेक्ष्यावेख्य धर्मार्थकामानामहितानामनुपसेवने हितानां चोपसेवने प्रयतितव्यम् । न हयन्तरेण लोके त्रयमेतन्मानसं किचिन्निप्पद्यते सुखं बा दुखं वा तस्मादेतच अनुष्टेयम् । तद्विद्यानां चोपसेवने प्रयतितव्यम्, आत्मदेशकुलकालवलशक्तित्राने यथावञ्चेति । (च सू ११) हित लाहार विहार करने वाला, मोच विचार कर काम करने वाला, विण्य वामनाओ में नासक्त न रहने वाला, दाता, सत्यवादी, जमावान्, वृद्ध और शास्त्रो का वचन मानने वाला तथा सबको समान भाव से देखने वाला मनुष्य नीरोग रहता है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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