SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिपकर्म-सिद्धि शोधनं शमनचेति द्विधा तत्रापि लखनम् । यदीरयेद् बहिर्दोपान् पञ्चधा शोधनं हि तत् ।। निरूहो वमनं कायशिरोरेकोऽस्त्रविस्रुतिः । न शोधयति यहोपान् समान्नोदीरयत्यपि ॥ समीकरोति विपमाञ् शमनं तच्च सप्तधा। पाचनं दीपनं शुत्तड्व्यायामातपमारुताः ।। वृंहणं शमनं त्वेव वायोः पित्तानिलस्य च । (अ ह सू १४) गुरुशीतमृदुनिन्धं वहलं सूक्ष्मपिच्छिलम् ।। पायो मन्दं स्थिरं नणं दन्यं वृंहणमुच्यते । चतुष्प्रकारा संशुद्धिः पिपासा मारतातपा ।। पाचनान्युपवासश्च न्यायामश्चेति लञ्चनम् । (च.सू २२) चरक ऋषि ने सर्व रोगो की सामान्य चिकित्मा में छ उपक्रमो का उल्लेख किया है। इनका सम्यक् रूप से प्रयोग होने पर सभी साध्य रोग अच्छे हो जाते हैं। ये सिद्ध उपक्रम माने गये है और इनका मात्रा और काल के अनुसार प्रयोग करने का उपदेन है। इन छ. उपक्रमो का सम्यक ज्ञान वैद्य के लिये आवश्यक माना गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि दोषो के विविध प्रकार के मसर्ग ने भांति-भांति के रोग होते है, परन्तु उनके उत्पादन में तीन दोपो के अतिरिक्त कोई दोष नही भाग लेता, उसी प्रकार भिन्न-भिन्न प्रकार के रोगो की चिकित्मा में इन छ उपक्रमो के अतिरिक्त क्सिी अन्य उपक्रम की आवश्यकता नहीं रहती, इन छ. उपक्रमो में ही सभी चिक्त्सिा मे व्यवहृत होने वाले उपक्रमों का समावेग हो जाता है। इति पट् सर्वरोगाणां प्रोक्ताः सम्यगुपक्रमा.। साध्यानां साधने सिद्धा मात्राकालानुरोधिन । दोपाणां बहु संसगात् संकीर्यन्ते उपक्रमा.। पटलं तु नातिवतन्ते त्रित्वं वातादयो यथा ।। (च, मू २२) ये छ उपक्रम कौन-कौन से है जिनके केवल एक या दो तीन या अधिक के मिश्रण ने सम्पूर्ण चिकित्सा सम्भव रहती है। ये उपक्रम निम्नलिखित है-- १. लंघन २ वृण ३. रुक्षण ४ स्नेहन ५. स्वेदन तथा ६ स्तंभन । इन कमों का सम्यक् रीति से जानने वाला ही वैद्य है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy