SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७ ) सद्वृत्त आयुर्वेद से सदाचार या सद्वृत्तों का बहुत अधिक महत्त्व जनस्वास्थ्यसंरक्षण की दृष्टि से दिया गया है । इनके अनुष्ठान या यथावत् पालन करने से न केवल आरोग्य की प्राप्ति होती है अपरञ्च इन्द्रियों पर आधिपत्य भी प्राप्त होता है जिससे व्यक्ति जितेन्द्रिय हो जाता है । ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य तथा स्त्रियों के ऋतुकालीन मढाचार प्रभृति आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक सद्वृत्त मनुष्य को पूर्ण बनाने का प्रयत्न करते है । आयुर्वेद में कथित सद्वृत्त उसकी एक बहुत बढी आधारशिला या नींव है । इसमें विश्वजनीन, सभी जाति, सम्प्रदाय और धर्मों मे गृहीत सदाचारों का उल्लेख है । संभव है उनमें कुछ ऐसे भी कर्त्तव्याकर्त्तव्यों का प्रसंग आया हो जिनकी औद्योगिक युग के परिवर्तनों के साथ मेल न खाये तथापि उनमे अधिकांश ग्रहण के योग्य ही हैं— 'जैसे सभी जीवों में दयाई मनोवृत्ति, त्याग की भावना, शरीर वाणी एवं मन की चंचलता का दमन तथा परोपकार मे स्वार्थ की कल्पना (परोपकार को स्वार्थ समझना इतना ही पर्याप्त सदाचार है ) ' आर्द्रसतानता त्याग कायवाक् चेतसा दमः । स्वार्थबुद्धि परार्थेषु पर्याप्तमिति सद्व्रतम् ॥ ( अ० हु० ) अन्यान्य सदाचार धर्मनिरपेक्ष, भौगोलिक सीमाओं से परे तथा सार्वभौम यह सिद्धान्त हैं । ऐसे ही ये सदवृत्त समस्त प्राणियों के लिये सुखदाई, व्यक्ति को अनेक गुणों से प्रसिद्ध बनाने वाले, मनुष्यों को सदैव आरोग्य प्रदान करने वाले, उसे दीर्घायु अर्थात् शतजीवी ( सौ वर्ष जीनेवाला बनाने वाले ) तथा मरने के अनंतर उसे सन्तोप और सद्गति देनेवाले बतलाए गये है ' ● इति चरितमुपेतः सर्वजीवोपजीव्यम्, प्रथितगुणगणौघो रक्षितो देवताभि । समधिकशतजीवी निर्वृतः पुण्यकर्मा, व्रजति सुगति निघ्नो देहभेदेऽपि तुष्टिम् II ( वृद्धवाग्भट ) भतएव आत्मकल्याण चाहनेवाले सभी लोगों को सर्वदा स्मृतिपूर्वक सभी सद्वृत्त का पालन करना चाहिये । सद्वृत्त के साधनों से मन- शरीर और इन्द्रियों को प्रकृत ( विकार रहित ) अर्थात् व्यक्ति को स्वस्थ रखा जा सकता है । यही इन उपदेशोंका अन्तिम लक्ष्य भी है - मनुष्य या समाज को स्वस्थ रखना । सक्षेप मे इन सद्व्रतों का वर्णन निम्नलिखित शब्दों मे किया जा सकता है .१ साम्येन्द्रियार्थ संयोग --- विभिन्न कर्मेन्द्रिय तथा ज्ञानेन्द्रियों (motor and २ भि० भू०
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy