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________________ १४४ भिपक्रम-सिद्धि कल्को को बारीक पीस कर मिलाए। इन नबको एक वडे गहरे पात्र में दाल कर मन्थन दण्ड से मथे मयवा जैसे ठीक समझे, वैसे मथे । यह न तो गाढा होना चाहिए और न पतला अपितु समान रहना चाहिए, दोपा की अवस्था देख कर मामरन, दूध, काजी, मत्र मिलाए । इसमे भली प्रकार छाना हुआ कपाय पच प्रसृति मिलाए । मात्रा:-बारह प्रमृति को बेष्ट मात्रा आम्यापन की होती है। उसमे आयु के अनुसार एक-एक प्रसूति घटाते हुए यया योन्च मात्रा की कल्पना करनी चाहिए। उदाहरणार्थ एक श्रेष्ट मात्रा वतलाई जा रही है, इसमें नैन्धव से लेकर कपाय पर्यन्त सभी द्रव्यो में अनुपात से कमी करते हुए छोटी मात्रा का विवान करना चाहिए। प्रथम मैन्धव एक कप, मधु दो प्रगति दनको मिला कर स्नेह तीन प्रमृति मिलावे, जन स्नेह मिल कर एक हो जाय तो उसमें करक एक प्रमति मिलावे, जब वे मिलकर एक हो जावें तो कपाय ४ प्रमृति मिलादे फिर प्रक्षेप २ प्रसृति मिलावे----इम प्रकार के मिलाने मे मात्रा वारह प्रसृति की बनती है । यही आस्थापन की श्रेष्ठ या उत्तम मात्रा है। आयु के अनुसार चरक ने इम मात्रा का निर्धारण निम्नलिखित भांति से किया है। एक वर्ष की आयु तक निरह की मात्रा आधी प्रसूति होनी चाहिए । पश्चात् आधी प्रसृति यायु के अनुसार वढनी चाहिए जब तक कि मायु बारह वर्ष की न हो जाय । फिर बारह से मठारह की आयु तक प्रतिवर्ष । के हिमाय मे एक-एक प्रसृति वढाना चाहिए । इस प्रकार पूर्ण मात्रा १२ प्रमृति की-आस्यापन में मानी जाती है। अठारह से लेकर ७० वर्ष की आयु तक इसी मात्रा में आस्थापन देना होता है। सत्तर वर्ष के बाद की आयु मे सोलह वर्प को भायु की मात्रा मे ही आस्थापन देना चाहिए। सामान्यतया बालक और वृद्ध में मृदु निरहण करना चाहिए। प्रचलित मान के अनुसार ८ तोले की एक प्रसूति होती है। प्रथम वर्ष की आयु मे माधा प्रसूति ४ तोले की निरह की मात्रा हुई, प्रति वर्ष आधी प्रसूति वढाते हुए वारह को आयु तक पूरी मात्रा ६ प्रमृति ४८ तोले अर्थात् ९॥ छटाँक की मात्रा निस्ह की हो जाती हूँ। १२ वर्ष की आयु से एक-एक प्रसृति क्रमश वढाते हुए १८ वर्ष की आयु मे निरूह को पूर्ण मात्रा १२ प्रसृति या ९६ तोले अर्थात् १ सेर की हो जाती है। यह कुल माना है। इसी मे सैघव, स्नेह, कल्क, कपाय आदि सभी का ग्रहण समझना चाहिए । वस्ति की संख्या - कर्म, काल और योग के विचार से तीन प्रकार की वस्तिया होती है । कर्म, काल और योग इन गब्दो की कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं पाई जाती है । सभवत.
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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