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________________ द्वितीय खण्ड : द्वितीय अध्याय १४१ लघु आदि गुणो की अनु वामन वस्ति मे व्यवहत होने वाली औपधियाँ भी होनी चाहिए। (९) विगोधन के योग्य रोगियो मे वृहण वस्तियो को न दे । जैसे कुष्ठ, प्रमेह और मेदस्थी रोगियो में मदैव मगोधन हो दे। इसके विपरीत क्षीण-क्षत, शोष और दुर्बल रोगियो मे सदैव वस्ति द्वारा वृहण ही कर्तव्य है, विशोधन नहीं । (१०) अनुवासन वस्ति के लिए आवश्यक है कि वह मलाशय या स्थूलान्त्र के अधोभाग मे तीन प्रहर तक ( ९ घण्टे तक ) पडी रहे उसके बाद निकले । उन लिए मलागर आदि के भले प्रकार से सशोधन के अनन्तर ही देना चाहिए ताकि उनका गोपण हो सके। यदि विना वहाँ देर तक रुके ही वस्ति द्रव्य निकल आवे तो पुन नई वस्ति देनी चाहिए । (११) अनवामन के कार्यों में व्यवहत होने वाली वस्ति सिद्ध तैलो की होती है और विविध औपधियो के पाक से मिद्ध तेल वस्ति की विधि से दिए जाते है। (१२) अनुवासन का प्रयोग रोगी का हाय धुला कर भोजन करा के, कगना चाहिए । अन्न की विद्ग्वावम्या में दिया गया स्नेह ज्वर पैदा कर देता है। अति स्निग्ध भोजन कराके या स्नेह पिला कर अनुवासन न देवे । दोनो मार्ग से दिया हआ स्नेह मद और मी उत्पन्न करता है। रूक्ष अन्न खाने पर दिया गया अनुवासन बल और वर्ण को घटाता है। इसलिए थोडे परिमाण ( मात्रा) मे स्नेह को भोजन मे देकर पश्चात् अनुवासन करे। मूंग आदि का यूष, दूध या मासरस, जो रोगी को अनुकूल और सात्म्य हो उसकी रोज की खुराक की चौथाई कम करके सिलावे । पश्चात् अनुवासन करे। (१३) रोगी को भली प्रकार स्नेह से अभ्यग और उष्ण जल से स्वेदित करके कुछ खिला कर, टहला कर, मल-मूत्र के त्याग के बाद उसे स्नेह वस्ति दे। (१४) स्नेह-वस्ति के ले चुकने के बाद पीठ के बल लेट कर एक सौ मात्रा तक प्रतीक्षा करे। हाथ, पैर आदि पूरे अग को फैलाये । इससे स्नेह का बल सारे शरीर मे फैल जाता है। हाथ-पैर के तलवो पर तीन तीन वार थपथपाए । नितम्बो को भी थपथपाये। शय्या के पैताने को भी तीन बार ऊंचा उठाए। इस प्रकार वस्ति के देने के पश्चात् रोगी अल्प परिश्रम करे, बोलना कम करे या मद आवाज से बोले तथा पूर्ण विश्राम करे, साथ ही अन्य आचार सम्बन्धी नियमो का पालन करे। (१५) प्रात काल धनियाँ और सोठ से सिद्ध गर्म जल देना चाहिए । इससे - अग्नि पर्याप्त होती है और भोजन मे रुचि होती है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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