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________________ (१५) होती हुई काल ले वे लय को भी प्राप्त होती हैं। इसी विधि-विधान के अनुसार मनुष्य तथा जीवधारियों में भी विकार (रोग) उत्पन्न होता है, उनमे क्रमशः जरावस्था की प्राप्ति होती और मृत्यु के द्वारा उनका निधन होता है। देव-योनि में ये परिवर्तन जो समय से उत्पन्न होते रहते है नही पाये जाते । मनुष्य और देवता तथा मर्त्यलोक और स्वर्गलोक मे यही महान् अन्तर है। देव लोग इन तीन अवस्थाओं से परे अर्थात् जरा, मृत्यु और रोग पर विजय प्राप्त किये है । मनुष्य अनेक युगों से देवत्व की प्राप्ति के लिये प्रयास करता आ रहा है। फलतः मानवों का जरा, मृत्यु और रोग को जीत लेना या इनके ऊपर विजय प्राप्त करने का प्रयास भी चिरन्तन है। आधुनिक युग के वैज्ञानिक भी रोगों पर विजय प्राप्त करने के लिये सतत प्रयत्नशील है, इसी प्रयास के फलस्वरूप उन्होंने 'प्रोफिलैक्सिस' के बडे-बडे साधनों का ईजाद किया है और क्रमश. आगे करते जा रहे है। जरावस्था पर भी विजय प्राप्त करने का दुंदुभि-घोप कर दिया है-युवक को वृद्धावस्था से परिणत करनेवाले कारणभूत विभिन्न हार्मोन्स, विटामिन्स की कमियों की खोज पुन उनकी पूर्ति के द्वारा जरावस्था को रोकने का प्रयास Geriatrics ग्रूप की चिकित्साओं की व्यवस्था के द्वारा चल रहा है। यद्यपि इनमे सफलता अभी तक पूरी नहीं मिल पाई है, सम्भव है भविष्य उज्वल हो । मृत्यु पर आधिपत्य कायम करने के लिये भी आज के वैज्ञानिक मनीपी अग्रसर है, परन्तु सफलता अभी भविष्य के अन्तराल में निहित है। दिव्य-आयुर्वेद मे एक स्वतन्त्र अंग ही रसायन नाम का पाया जाता है। उसके अन्य अंग वचित् अपूर्ण भी हों, परन्तु यह आज भी स्वत. पूर्ण है और अनुपम है। आयुर्वेद का द्विविध प्रयोजन ऊपर बताया जा चुका है-स्वस्थ को उर्वस्कर रखना उसका एक अन्यतम प्रयोजन है । इस निमित्त ही रसायन और वाजीवर अधिकारों का वर्णन पाया जाता है। सुन्दर स्वास्थ्य के साथ ही साथ दीर्घायुष्य की प्राप्ति भी आयुर्वेद का प्रयोजन है । इसकी प्राप्ति भी रसायन के द्वारा ही सम्भव है । 'रसायन के द्वारा जरा और रोग की अवस्था को जीता जा सकता है । 'रसायनं तु तज्ज्ञेयं यज्जरा व्याधिनाशनम् ।' मनुज्य रसायन के सेवन से दीर्घायु, स्मृति, मेधा, आरोग्य, यौवन, कान्ति, वर्ण और स्वर की वृद्धि, देव एवं इन्द्रियों का उत्तम वल, वाक्सिद्धि, नम्रता और तेज को प्राप्त करता है। शरीर के लिये लाभप्रद रस-रक्त, मांस-नेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र प्रभृति धातुओं की प्राप्ति रसायनों के सेवन से होती है इसीलिये इन्हे रसायन कहा जाता है। जो व्यक्ति विधिपूर्वक रसायनों का सेवन करता है वह केवल दीर्घायु ही नही प्राप्त करता अपितु देवर्पियों द्वारा प्राप्त गति एवं अक्षर ब्रह्म को भी प्राप्त करता है। . .
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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