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________________ १२८ भिपकर्म-सिद्धि जाया करते है । ऐसे व्यक्तियों में विरोधी भोजन, अध्ययन एव वजीजन्य उत्पन्न दोपो के महन की शक्ति आ जाती है । परन इनमें तज्जन्य रोग नहीं होते । इनको स्वस्थ अवस्था में विशोधन की कभी आवश्यकता नहीं। उनका सदैव स्नेहन करना चाहिए एवं वायु ने रक्षा करनी चाहिए। विना व्यापि के उनका विद्योधन न करे । अर्थात् रोग की अवस्था में यदि उनके विधान हो तभी करना चाहिए अन्यथा नही | देश, काल का ध्यान रखते हुए उपर्युक्त विधियों का अनुसरण करते हुए यन्नपूर्वक विरेचनो का प्रयोग करने में कोई दोष नहीं होता । परन्तु विपरीत क्रमी पर चलने से रोगी के ऊपर विपवत् प्रभाव होता है । अवाम्य रोगी (Contraindicatious of Emesis) - , 1 क्षतक्षीण, अतिस्थूल, वतिकृम, बाल, वृद्ध, दुर्बल, श्रान्त, पिपासित, क्षुक्ति कर्मभाराध्यवन कपित, उपवास, मैथुन, अध्ययन, व्यायाम, चिन्ता प्रभक्त, म युक्त गर्भ, सुकुमार, सवृत्तकोष्टदुरय, रक्त पित्त प्रक्त छर्दि कान स्थापित, अनुवासित, हृद्रोग, उदावर्त, मूना घात, प्लीह, गुरम, उदर रोग, अष्टीला, स्वरोपघात, तिमिर, गिर, वर्ण, नेत्र एवं पाण्डु रोग से पीडित व्यक्ति मे वमन न करावे | 1 वमन के योग्य रोगी ( Indication of Emesis ) :- नेप रोगियों में वमन करावे | जैसे विशेषत पोनम, कुष्ट, नवज्वर, राजयक्ष्मा, काम, श्वास, गलग्रह, गलगण्ड, ब्लीपद, मेह, मन्दाग्नि, निरद्वान्त्र, अजीर्ण, विसूचिका, अलसक, विपपीत, गरपीत, विपदष्ट, विपविद्ध, विपदिग्ध, अयोग रक्तपित्त, प्रनेक, अर्श, हल्लास, अरोचक, अविपाक, अपची, अपस्मार, उन्माद, अतिनार, गोफ, पाण्ड रोग, मुखपाक, दुष्ट स्तन्य, कफजरोग । इन रोगो में वमन एक प्रधान और उत्तम कार्य है । जैसे कि क्यारी के वध के टूट जाने पर धान्य में अत्यधिक पडा हुआ जल निकल कर अन्त को मुखा देता है । इसी प्रकार इन रोगियों में वमन गरीर के टोपो को निकाल कर रोग को मुखा देता है | विरेच्य रोगी - ( Indication of Purgations ) कुट, मेह, ज्वर, ऊर्ध्वग - रक्त-पित्त, भगंदर, उदर रोग, अर्श, ब्रध्न, प्लीह, गुल्म, अर्बुद, गलगण्ड, ग्रन्थि, विसूचिका, अलसक, मूत्राबात, कृमि कोट, विनर्प, पाण्डुरोग, गिर गूल, पार्श्वशूल, उदावर्त्त, नेत्रदाह, आस्यदाह, हृद्रोग, व्यग, नीलिका, नेत्र रोग, नासारोग, मुखरोग, कर्णरोग, हलीमक, श्वाम, कास, कामला अपची, अपस्मार, उन्माद, वातरक्त, योनिदोष, रेतोदोप, तिमिर, अरोचक, अविपाक, छर्दि, गोथोदर, विस्फोट, आदि पित्त दोष समुत्य रोग । अग्नि के
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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