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________________ भिपकर्म - सिद्धि १२२ औपत्रियो के सयोग मे ), विश्लेप ( विरुद्ध वीर्य द्रव्यों को निकाल देने से अथवा समान वीर्य द्रव्यों के निकाल देने से ), काल ( समान या अनमान होने से ), मस्कार ( समान या असमान गुण धर्म वाले सस्कारो मे ) तथा युक्ति ( प्रयोग की चातुरी के ऊपर अल्प गुण की औपधियो से बडा काम और वडी गुण वाली औपधियो से भी छोटा काम लिया जा सकता है । उदाहरण के लिए सम्यक् प्रकार मे स्निग्ध रोगी मे अल्प वीर्य वाली ओपधि से भी किया गया गोधन बहुत मात्रा में दोपो को निकाल सकता है । इसके विपरीत अस्निग्ध व्यक्तियो मे तीव्र वीर्य की सोपधि के उपयोग से भी अल्प कार्य का या सर्वथा कार्य-हीनता देखी जाती है । मक्षेप मे (१) मयोग ( Addition ) (२) त्रिश्लेप ( Substraction) (३) काल (Time) (४) संस्कार ( Reactions ) तथा ( ५ ) युक्ति ( gudicial use) के ऊपर शोधन के लिए प्रयुक्त औपवियो के कार्य ( Action ) भिन्न-भिन्न स्वरूप के हो सकते हैं । ( २ ) जिस प्रधान द्रव्य ( Main Ingradients ) के साथ दूसरे द्रव्य मिलते है, वे प्रधान के अनुमार ही कार्य करते हैं । उम योग का नाम भी उम प्रधान औषधि द्रव्य के अनुरूप ही होना चाहिए। जैमे लगुनादि वटी, कृष्णबीजादि चूर्ण आदि । प्रवान द्रव्य की उपमा राजा से दो सकती हैं जैसे, किसी राज्य मे राजा प्रवान होता है राजा का अनुसरण उसकी प्रजा करती है । उसी प्रकार प्रधान द्रव्य योग मे राजा का स्थान प्राप्त किए रहता है । उसके साथ कुछ विरुद्ध वीर्य की भी औषधियाँ मिल जायें तो वे भी प्रधान की क्रिया में वाधा नही पहुँचाती तथापि समान या तुल्य वीर्य औपवियो ने बना योग श्रेष्ठ होता है और उसमें कार्य करने की क्षमता भी अत्यधिक होती है । और ( ३ ) तुल्य वीर्य ( Equal Properties) के द्रव्यों के योग तथा तुल्य वीर्य स्वरसो की भावना से योग अधिक वलवान हो जाता है । किसी विशेष औपवि का गुण बढाना हो तो उसी ओपवि के स्वरस से भावना दे दी जाय तो वह अधिक क्तिगाली और कार्यकर हो जाती है । उदाहरण के लिए आँवले या लोध्र के चूर्ण में यदि आंवले या लोध्र के स्वरस को भावना दे दी जाय तो वह अधिक वीर्यवान ( Increased properties and Potency ) का हो जाता है | थोडी मात्रा मे इसका प्रयोग अधिक कार्यकर हो जाता है । इसलिए सदैव तुल्यवीर्य स्वरसों की ही भावना देनी चाहिए। जैसे लोन जो स्वयं रेचक है, उनमें स्तुही क्षीर की भावना । ( ४ ) ऊपर लिखे वमन एवं विरेचन के कल्प तीन प्रकार के हो सकते
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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