SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय खण्ड : प्रथम अध्याय १०१ पचे वह उत्तम होती है । स्नेह के पाचन काल के ऊपर आधृत यह मात्राओ का निर्देश है । इन मानाओ का उपयोग रोग या दोपो की ( toxemia ) की अल्पता, मध्यता एव तीव्रता के अनुसार यथाक्रम हस्व, मध्य एव उत्तम क्रम से किया जाता है । साथ ही व्यक्ति के अनुसार भी मात्रा का विचार अपेक्षित है । उदाहरणार्थ जो व्यक्ति नित्य प्रचुर स्नेह लेता है, भूख और प्यास को वर्दाश्त कर सकता है तथा जिसकी अग्नि दीप्त है, उसके स्नेहन के लिये उत्तम मात्रा में स्नेह का प्रयोग करना चाहिये । रोग की दृष्टि से विचारें तो गुल्मी, सर्पदष्ट, निसर्प पीडित, अपस्मारी, उन्मत्त, मूत्रकृच्छ्र और पाखाने की गाँठ वने व्यक्तियो में उत्तम मात्रा में स्नेह का उपयोग करना चाहिये । जो व्यक्ति अधिक खाने वाला न हो, जिसका कोष्ठ मृदु हो, जिसका बल मध्यम कोटि का हो उसे मध्यम माना मे स्नेहपान कराना चाहिये । मध्यम मात्रा का स्नेह-पान अधिकतर शोधन कार्यों के लिये कराया जाता है । इम मात्रा मे व्यक्ति का सुखपूर्वक स्नेहन हो जाता है । रोगो की दृष्टि से विचारें तो अरूपिका, स्फोट, पिडिका, कण्डु, पामा, कुष्ट, प्रमेह और वातरक्त प्रभृति रोगियो मे इस मात्रा ( मध्यम ) का स्नेह-पान कराना चाहिये । बालक, वृद्ध, सुकुमार और आराम का जीवन विताने वाले व्यक्ति, जो साली पेट न रह सकते हो अथवा अल्पवल व्यक्ति हो, उनमे हीन या अवर या ह्रस्व मात्रा मे स्नेह-पान कराना चाहिये । तो होन मात्रा मे स्नेहपान निम्नलिखित रोगियो मे कराना चाहिये – ज्वर, अतिसार, कास, चिरकालीन दुर्बल रोगी, मदाग्नि से पीडित रोगियो मे । अज्ञात कोष्ट वाले व्यक्तियों में भी स्नेह की छोटी से छोटी मात्रा मे ( हसीयसी ) स्नेहन करना चाहिये । रोग की दृष्टि से विचारे प्रयोजन की दृष्टि से विचार-व्यावहारिक दृष्टि से स्नेहन का प्रयोग तीन प्रधान उद्देश्यो को ध्यान मे रखते हुए किया जाता है – १ सशोधन (purging) > सगमन ( sedation ) तथा ३ वृहण ( tonic actions ) । जहाँ पर पचकर्मो के पूर्व कर्म ( preparation ) के रूप मे शुद्ध गोवन ही लक्ष्य है, उपर्युक्त नियमो के सम्बन्ध मे प्रचुर विचारणा की आवश्यकता पडती है, परन्तु जहाँ पर बढे हुए दोपो का सशमन अथवा वृहण करना ही लक्ष्य हो जैसे ( avitaminosis or deficiency diseases ) इनमें अधिक विचार की आवश्यकता नही रहती । सशमन के लिये आम तौर से भूख लगने पर या विना भोजन किये खाली पेट पर मध्यम मात्रा मे स्नेह पिलाना चाहिये । वृहण के लिये अर्थात कृश, दुर्बल, ( T B ) प्रभृति मे व्यक्तियो की
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy