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________________ युक्त दो सूत्रों मे ही है । इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। आधुनिक शब्दों मे कहना हो तो स्वास्थ्यरक्षण के उद्देश्य को Profilaxis और आतुर विकार प्रशमन को Curative कह सकते है। प्रथम के लिये Public Health and Hygiene का विभाग और दूसरे के लिये Curative teatment, Hospi tals and Dispensaries का विभाग आज भी सभ्य देशों को सरकारे कायम कर रही है। आयुर्वेदावतरण में क्रम तथा अश्विनीकुमार दिव्य विद्या आयुर्वेद का पृथ्वी पर लोक-कल्याण की भावना से अवतरण हुआ है। सर्वप्रथम ब्रह्मा विद्या के आदि ज्ञाता है, उनसे प्रजापति को विद्या मिली, पश्चात् अश्विनीकुमारों को, ततः इन्द्र को; तदनन्तर विभिन्न ऋपियों में विद्या का आविर्भाव हुआ तदनन्तर इह लोक के चरक सुश्रुत-प्रभृति ऋपियों को विद्या मिली । पुन. इहलोक में आयुर्विद्या का प्रचार हुआ। अश्विनीकुसार युग्म (दो) माने गये है। ये चिकित्सा के मूलभूत दो लक्ष्यों के स्वस्थवृत्त ( Profilaxis ) तथा चिकित्सा ( Cnre ) के प्रतीक है । चिकित्सा-विज्ञान ही दो लक्ष्यों को सामने रख कर वढता है। अतएव स्वयं यमल स्वरूप ( Twin ) काहै। जैसे यदि आयुर्वेद का पर्याय Med1cine करे तो उसके दो बडे वर्ग प्रेफिलेक्सिस एवं क्यिोरेटिव हो जाते है । पुनः प्रेफिलेक्सिस के दो विभाजन हों तो दो वर्ग स्वस्थ रखना मात्र (Hygiene) तथा स्वस्थ को उर्जस्कर बनाना-वल्य, वाजीकरण एवं रसायनों (Tonics and Geriatrics ) के प्रयोग से होते है । इसी प्रकार विशुद्ध तथा केवल 'क्योरेटिव ग्रूप' का ही विभाजन करे तो उसमे पुन दो खण्ड शल्य-चिकित्सा ( Surgery ) तथा कायचिकित्सा (Inner Ceneral Medicine) करके पुन दो वर्ग हो जाते है। कहने का तात्पर्य यह है कि चिकित्सा-विज्ञान सदैव यमलस्वरूप का होता है, सम्भवत' अश्विनीकुमारों का प्रतीक इसी आधार पर ग्रहण किया गया हो। " आयुर्वेद का वैशिष्ट्य 'स्वस्थातुरपरायणम्'-आयुर्वेद का संवन्ध स्वस्थ एवं रोगी दोनों ही प्रकार के मनुष्यों से है। पूरे आयुर्वेद को त्रिसूत्र कहते है क्योंकि इसमें हेतु ( Etiology ), लिङ्ग (Signs and Symptoms ) तथा औपध ( Proper Medicaments ) का वर्णन किया जाता है । यह त्रिसूत्र स्वस्थ के स्वास्थ्य के वनाये रखने में उतना ही उपयोगी है जितना रोगी के रोग-प्रगमन में। उदाहरण के लिए स्वस्थ के पक्ष में उनकी स्वस्थता मे हेतु, स्वस्थ के लक्षण तथा स्वस्थ रखने की औपधियाँ बतलाई जायेगी। रोग की अवस्था में रोग का
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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