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________________ द्वितीय अध्याय ७१ चक्रपाणि - ऐसा मानना न्यायोचित है । अर्थात् व्याधि उत्पादक दोष के विविधव्यापारयुक्त (परिणाम युक्त ) व्याधिजन्म ही सम्प्राप्ति है - ऐसा कहना चाहिये । केवल व्याधिजन्म नही । इसी लिये वाग्भट ने दोपदृष्टि एव उनके परिणामो से युक्त व्याधिजन्म को सम्प्राप्ति वतलाई है जैसा कि निरुक्त के प्रथम श्लोक से स्पष्ट हैं । फलत विशिष्ट प्रकार के व्याधिजन्म को सम्प्राप्ति कहते है - सामान्य व्याधिजन्म की ( नही ) इस प्रकार की सम्प्राप्ति व्याधि की यथार्थ ज्ञापिका होती है उसका व्याधि के रामनार्थ चिकित्सा मे भी वैशिष्ट्य आता है जैसा कि ज्वर की सम्प्राप्ति से आमाशयदृष्टि एव अग्निनाश का ज्ञान होने पर लघन, पाचन, स्वेदन प्रभृति उपचारो की उपयोगिता स्वयम् प्रकट हो जाती है | अव शका होती है कि इस प्रकार की सम्प्राप्ति तो दोषो का अवान्तर व्यापार ही हुई अत दोपो के दुष्टिकथन से ही काम चल सकता है तो फिर अलग से इसके वर्णन का क्या प्रयोजन ? इसका उत्तर यह है कि चिकित्सा विशेष के लिये इसका पृथक् वर्णन अपेक्षित है । जिस प्रकार पूर्वरूप और रूप दोनो मे व्याविज्ञापन में समानता होते हुए भी चिकित्साविशेष के लिये पृथक्-पृथक् पाठ किया गया है । पूर्वरूपावस्था या रूपावस्था की चिकित्सा मे परस्पर भेद होता है | एक ही रोग की पूर्वावस्था मे दी गई चिकित्सा रूपावस्था मे अनुपयुक्त हो सक्ती है उसी प्रकार रूपावस्था की चिकित्सा पूर्वरूपावस्था मे अनुपयोज्य है, इसी प्रकार सम्प्राप्ति का भी चिकित्सा मे अपना वैशिष्ट्य है । ● प्रतिश्याय के पूर्वरूप में अनूर्जताहर औषधियां ( Anti bristamin drugs) उत्तम कार्य करती है - जैसे हरिद्रा और गुड । परन्तु प्रतिश्याय हो जाने पर अर्थात् रूपावस्था मे इनका कोई विशेष महत्त्व नही रहता । इसी प्रकार अन्यत्र भी समझना चाहिये । ज्वरसम्प्राप्ति उदाहरण -- स यदा प्रकुपितः प्रविश्यामाशयमूष्मण: स्थानमूष्मणा सह मिश्रीभूतमाद्यमाहार परिणामधातुं रसनामानमवेत्य रसस्वेदवहानि स्रोतांसि पिधायाग्निमुपहत्य पक्तिस्थानादूष्माणं बहिर्निरस्य केवलशरीरमनुप्रपद्यते तदा ज्वरमभिनिर्वर्त्तयति । ( च नि १ ) यह वातिकज्वर की सभ्प्राप्ति का कथन है, इसी प्रकार पैत्तिकादि ज्वरो की सम्प्राप्ति का भी वर्णन पाया जाता है । आमाशय कफ का स्थान है ज्वरितावस्था मे दोष भी इसमे आश्रित रहते हैं । परिणामस्वरूप पाचक रसो की हानि तथा
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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