SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७ ) ऋषयश्च भरद्वाजाजगृहुस्तं प्रजाहितम् । दीर्घमायुश्चिकीर्पन्तो वेदं वर्धनमायुष ।। तस्यायुप पुण्यतम वेदो वेदविदां मत । वच्यते यन्मनुष्याणा लोकयोरुभयोर्हितम् ।। (च० सू० १) इस विशिष्ट आयुवेद के स्वरूप ज्ञान के लिये कुछ विशद वर्णन अपेक्षित है। अन चतुर्विध आयु तथा उससे युक्त मनुष्यों की पुनःविवेचना प्रस्तुत की जा रही है। ___ सुखायु-दुःखायु युवावस्था, गारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से मुक्त, बल-वीर्य-यश-पौरुषपराक्रम, ज्ञान-विज्ञान इंद्विय तथा इन्द्रियाथो से सक्षम, विविध प्रकार के सुन्दर सुहावने उपभोगों के भोगों में समर्थ मनुष्य को आयु सुखायु है। यह व्यक्ति सुखी और स्वस्थ कहलाता है । इसके विपरीत व्यक्तियों को अस्वस्थ, दुःखयुक्त और उसकी आयु को दु.खायु कहते है । (Healthy and unhealthy life) । सुवायु वाले व्यक्ति के द्वारा किया हुआ कोई भी आरभ ठीक तरह से पूरा होता है और वह सुखपूर्वक विचरता है। इसके विपरीत दुःखयुक्त व्यक्ति की दशा रहती है। हितायु-अहितायु सुखायु को सतत बनाये रखने के लिये आयु के हितावह द्रव्य, गुण तथा कमी की जानकारी आवश्यक है। हितैपी व्यक्ति को परोपकारी, सत्यवादी, शान्ति-प्रिग, परीक्ष्यकारी एव अप्रमत्त होना चाहिये। धर्म-अर्थ-काम प्रकृति त्रिवों का सम्यक्-संचय, पूज्यों का पूजन, वृद्धों का अनुसरण, राग-रोप इर्ष्यामद-मान प्रभृति वेगों को धारण करना चाहिये। ऐसे व्यक्तियों को तपस्वी, दानी, ज्ञानी, अध्यात्म-शास्त्र का अभ्यासी तथा स्मृतिमान् होना आवश्क है। ये सभी कर्म आयु के लिये लाभप्रद होते है। इनके विपरीत कर्म आयु के लिए अहित होते है । ( Any thing usefull or harmful to life ) इसका उपदेश भी आयुर्वेद का कर्तव्य है। आयु-प्रमाण. देह के प्राकृतिक लक्षगों के आधार पर आयु का प्रमाण आयुर्वेद के ग्रथों मे बतलाया जाता है । जैसे लम्बी आयु वाले व्यक्तियों का परिचय निम्नलिखित सूत्रों के आधार पर होता है : 'सभी सारों से युक्त पुरुप, अति बलवान् , परम-सुख युक्त, क्लेश-सह, सभी कमी का आरम्भ करके पूर्ण करने के विश्वास से युक्त, कल्याण की भावना
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy