SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २] भगवान पार्श्वनाथ। ऐणाम था कि जब हैदराबाद सिघमें मैं 'नवलराय हीरानंद ऐकेमी' नामक स्कूलमें अंग्रेजी पढ़ता था, तब अन्य छात्र जहां गुरु नकनीके बोलमें धर्मपरीक्षा देते थे, वहां मैं जैन स्तोत्र और सामायिकपाठको सुनाता था। इस तरह धार्मिक भावुकताकी जड़ मेरे हृदयमें बचपनसे जम गई थी । बचपन में मेरठ व अलीगंजमें मैंने हिन्दी और उर्दू पढ़ली थी । हैदराबादमें मैट्रिकतक अंग्रेजीका अध्ययन किया था; दूसरी भाषा फारसी थी। अलीगंजमें एक पंडित महाशयसे संस्कृत भाषा पढ्नेका प्रयत्न किया, पर असफल रहा। सन् १९११ के लगभग मेरा विवाह कर दिया गया । सन् १९१८ में माताजीका स्वास्थ्य खराब हो गया और उन्हींकी सेवामे व्यस्त रहने के कारण मेरा अध्ययन वीचमे ही ! छूट गया। इसके बाद ही माताजी और पत्नीका देहात होगया, घर सूना होगया, हृदयमें अपनेको पहिचानने का भाव जागृत हुआ परन्तु व्यापार में लग जानेसे वह ज्यादा पनपा नहीं! हैदराबाद के अतिरिक्त बरेली में भी फर्मका कार्य चल निकला । मैं वरेली रहता था। धर्मपुस्तकोंके देखने का सौभाग्य मुझे म्ब० कुमार देवेन्द्रप्रसाद जीके विज्ञापनोंसे प्राप्त हुआ था। उन्होंने मुझे एक्दम अपनी सत्र पुस्तके भेज दी थीं | मैं उनका अध्ययन करता रहा। फिर मेरे अभिन्न मित्र और प्रेमी श्रीयुत् वा गिववरणलालनीके यहा वेदीप्रतिष्ठा महोत्सव हुआ। उस समय व० गीतलप्रमादजी म० मे भेट हुई। उन्होंने जनधर्मके अध्ययन और प्रभावनाके लिये उत्तपादित किया । मैं 'जनमित्र' व 'निगम्बर जैन मंगवाने लगा। इनके पानेमे व लिखनेका गीक हमा। देख लिखे परन्तु मर
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy