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________________ भगवान पार्श्व व महावीरजी! [३८९ करते थे। इसलिये अवश्य अंतिम तीर्थकरके शिष्योको विशेष रीतिसे धार्मिक क्रियायोंको समझानेकी आवश्यक्ता युक्तियुक्त प्रगट होती है, परन्तु इसके माने यह नहीं होसक्ते हैं कि भगवान् पार्श्वनाथने जैन सिद्धांत अथवा दर्शनका निरूपण नहीं किया था। जैनसिद्धांतका निरूपण तो उनने प्रायः उसी तरह किया था जिस तरहभगवान महावीरने किया था । हां, उनके शिष्य सचमुच इतने सरल और बुद्धिमान थे कि उनको समझानेके लिये उन्हें उतना अधिक प्रयत्न नहीं करना पड़ता था । इसलिये जैनशास्त्रोंके उपरोक्त कथनोंसे यह प्रमाणित नहीं होता कि भगवान पार्श्वनाथनीने दर्शनवाद (Philosophy) का प्रतिपादन ही नहीं किया था। डॉ० बारुआ यद्यपि करीब२ सत्यकी तहतक पहुंचे हैं; परन्तु उनने शिष्योंकी सरलता और बुद्धिमत्ताके कारण भगवान पार्श्वनाथनीके निकट दर्शनवाद न माननेमें अत्युक्तिसे काम लिया है यह कहनेके लिये हम बाध्य है । भगवानकी दिव्य ध्वनिसे तत्वों का निरूपण अवश्य हुआ था। दूमरे महावीरस्वामीको पहले पार्श्वनाथनीके संघमें सम्मिलित __ होने और फिर अलग होकर आजीविकसंघमें मिलनेकी बात भी कोरी कल्पना है । उसके लिये कोई भी जैन अथवा अजैन प्रमाणा उपलब्ध नहीं है । अवश्य ही जैनशास्त्र कहते हैं कि नाथवंशी क्षत्री और भगवान महावीरके पितगण भगवान पार्श्वनाथके सपके उपासक थे; किन्तु इसके साथ ही वे भगवान महावीरको एक स्वाधीन श्रमण होनेका भी उल्लेख करते हैं, क्योंकि तीर्थंकर भगवान 'स्वयंबुद्ध' होते हैं। वे दूसरोंको अपना गुरु नहीं बनाते हैं। यही बात भगवान् महावीरके सम्बन्धमें जैनशास्त्रोंमें कही गई है। उनको
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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