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________________ भगवान पार्श्व व महाबीरजी। [१८५ विवेचन सैद्धांतिक ढगसे किया है। शीलव्रत नियम भी उनके खास थे। प्रो. हीस डेविड्स जो प्रो० जैकोबीको चातुर्याम नियमसे पार्श्वनाथनीके चार व्रतोंका भाव ग्रहण कहते बतलाते हैं वह गलत है । और (५) पार्श्वनाथनीके और महावीरस्वामीके सघोमें परस्पर प्रगट भेद था, जिसके कारण यद्यपि पहले दोनों सघ अलग थे। परन्तु उपरांत वे एक होगये । आखिर महावीरस्वामीके निर्वाणके उपरांत ही वह फिर दो भागोंमें विभक्त होगये; जैसे कि बौद्धोंके ग्रन्थोंसे प्रगट है। अतएव आइये पाठकगण ! इन पांच बातोंके औचित्यपर भी एक दृष्टि डाल लें । उपरोक्त कथनमें भी पार्श्वनाथनीको महावीरस्वामीका पूर्वागामी तो स्वीकार किया गया है, परन्तु उनको एक सामान्य साधु बतलाया है, जिनको अपने सघकी व्यवस्था और चारित्र नियमोंसे ही मतलब था। सिद्धांतवाद ( Philosophy) न उनके लिये आवश्यक था और न वह उनके निकट मौजूद था। कोई भी ऐसा प्रमाण उपलब्ध नहीं है, जिससे यह सिद्ध किया जासके कि पार्श्वनाथस्वामी एक सैद्धांतिक वक्ता अथवा तत्त्ववेत्ता (Philosopher) थे; किन्तु इसके साथ ही ऐसा भी कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है जो जैनियोकी मान्यताको गलत ठहराकर भगवान् पार्श्वनाथके निकट सिहातवाद नहीं था, यह प्रगट कर सके । प्रत्युत डॉ० हेल्मुथ वॉन लगेसेनप्पने यही प्रगट स्वीकार किया है, जैसे कि हम पहिले देख चुके हैं कि जैनधर्मके 'मूल तत्वोमें कोई स्पष्ट फर्क हुआ, ऐसा माननेका कोई कारण नजर नहीं आता और इसलिये महावीरस्वामीके पहले भी जैन दर्शन था, ऐसी जैनोंकी
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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