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________________ २८२] भगवान पार्श्वनाथ । वहा है। इस तरह नैकोबीके साथ यह मानना ठीक है कि सामन्तफलसुत्तमें निन चार नियमोंका उल्लेख किया गया है वह गलत है और जो सिद्धांत महावीरका बताया गया है वह न उनका है और न उनके पूर्वागामी तीर्थंकरकाः यद्यपि उसमें किसीके विरुद्ध भी कुछ नहीं है। क्योंकि जैन ग्रन्थोंके अतिरिक्त बौद्धोके मज्झिमनिकाय (१३५-३६)के एक सूत्रसे ज्ञात होता है कि महावीरकी दृष्टिमें मोक्षमार्ग अहिमा, अचौर्य, शील, मत्य और तपोगुण जैसे नानपरीषह, उपवास, आलोचना आदि रूप था। . इसलिये जैन और बौद्ध दोनोंके आधारसे यह कहा जासक्ता है कि इनमें से पहलेके चार नियमोका विधान पार्श्व द्वारा हुआ था और उनमें अंतिम महावीरनी द्वारा बढ़ा दिया गया है । "अब अपने २ समयके प्रतिष्ठित तीर्थंकरों, पार्श्व और महावीरका पारस्परिक अन्तर स्पष्ट ननर पडता है अथवा यूं कहिये कि अब इस प्रश्नका उत्तर दिया जा सकता है कि वस्तुतः क्या पार्श्व महावीरके सैद्धांतिक पूर्वागामी पुरुष थे ? पार्चका जो थोड़ासा बीवन विवरण प्राप्त है वह स्पष्ट दिखलाता है कि वह अमलीकायकी ओर अधिक रुचि रखते थे। उनका व्यवस्थापक गुण उल्लेखनीय था। जिस संघकी स्थापना उनके द्वारा हुई थी वह अपने उच और कठिन दर्जेके साधु चारित्रके लिए प्रख्यात रहा था। उनने चार नैतिक नियमों का पालन करना अपने शिष्योके लिए. आवश्यक बतलाया था। इन्हीं नियमोंका पालन करना बुद्ध और महावीरने भी उचित ठहराया था। पावके विषयमें यदि इन्हीं चार नियमों में उनके चारित्र विधानका मन्त समझ लिया जाय, तो
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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