SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२] भगवान पार्श्वनाथ । चोर क्षुल्लकवेषमें वहां पहुंच गया! भव्य चैत्यालयको देखकर उसका हृदय गद्गद हो गया ! मनोहर वेदिकामें श्री पार्श्वनाथ भगवान्की अति मनोज्ञ और रत्नमई प्रतिमा विराजमान थी जिसपर रत्नजटित तीन छत्र अपूर्व ही शोभा देरहे थे। इन छत्रोंमेंसे एकमें वैडूर्यमणि नामक अत्यन्त कांतिमान बहुमूल्य रत्न लगा हुआ था ! वेषधारी क्षलकका हृदय उसको देखते ही बांसों उछलने लगा ! उसको सोलह आने निश्चय होगया कि यह बहुमूल्य रत्न तो अब मिल ही गया । लोभके वशीभूत होकर उस क्षुल्लक वेषधारी चोरने कुछ __ भी कार्य अकार्य न पहिचाना ! उसे केवल वैडूर्यमणिको पानेकी फिकर थी। यह सूर्यचोर चोरोंके एक नामी गिरोहका सदस्य था और उस गिरोहका नेता सौराष्ट्र देशके पाटलिनगरके राजा यशोध्वज और रानी सुसीमाका पुत्र सुवीर था' सुवीर महाव्यमनी और चोर था ! उसने ताम्रलिप्त नगरके जिनेन्द्रभक्त सेठके चैत्यालयमेंके मूल्यमई रत्नका हाल सुना था । इसी कारण उसने अपने साथियोंको उस रत्नको किसी तरह भी ले आनेके लिये कहा था। इसपर इस सुर्यचोग्ने उम रत्नको ले आनेका भार अपने ऊपर ले लिया था ! सूर्य चोरको मालूम था कि जिनेन्द्रमक्त सेठ अपने नामके अनुसार ही जिनभगवान्के परमभक्त है और वे धर्मात्मा पुरुषोंसे बड़ा प्रेम करते हैं। सेठनीकी इस धर्मवत्सलतासे अनुचित लाभ उठाना उस चोरने ठान लिया। अनेक जीर्ण मंदिरोंका उद्धार करानेवाले, आवश्यक्तानुसार अनेकों भव्य मंदिरों और प्रतिमाओंको वनवानेवाले एवं चारों संघोंको दान देने और सत्कार करनेवाले उन सेठको इस
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy