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________________ ___३५८] भगवान पार्श्वनाथ । दृष्टि पड़ गया ! (तं सुणिवि वयणु रायाहि राउ-संसार होउवरि विरत्त भाउ) वह राजाधिराज इन्ही शुभ भावोंको लिये हुये नंदनवनमें पहुंच गये । (संपत्त उणंदणु तण भमहु) वहां उन्होंने भक्तिभावसे उन मुनींद्रकी वंदनाकी और संस्तुतिकी थी। जैनाचार्य यही कहते है:_ 'भामरेतिउ देविणु थुइ करेवि । पुणु चरण दामलजुवलउसरेवि ।। जय तिमिर विणासण खरदिणिद । पय पाडिय पई मुरणर फणिंद ॥ जय माण महागिरि वज्ज दण्ड । जय णिरुममोक्खहो भरिय कुण्ड ॥जय मोह विडवि छिंदणकुट्ठार। जय चउगइ सायर तरण पार ॥ तुई दूरि णमंतहं हरीहपाऊं। जहं दिणयरु तम फेडण सहाऊ ।। यह सुमरइ अणुदिणु जो मणेण । सो सिवपुरि पावइ तरकणेण ॥ कमकमलइ वंदिवि मुणिवएमु । ऊवविठ्ठउ अग्गे एतवधरासु॥ सो भणइ भडारा हरिय छम्मु । महो कोविपयासहि परम धम्मु ।" करकंडु मुनिराजकी विनय करके उनके सामने बैठ गया और तब उन कपालु भट्टारकने परम सुखकारी धर्मका उपदेश दिया, जिसको सुनकर सबके हृदय प्रसन्न होगये। उपरांत सबने अपने२ पूर्वभव उन महाराजके मुखारविन्दसे सुने । उससे उनने जाना कि कुंतलदेगके तेरपुर नगरमें पहले एक ग्वाला था। उसने बड़े प्रेम और भक्तिभावसे एक हजार पांखुरीवाले कमलसे श्री जिनेन्द्रदेवकी पूजा की थी और आयुके अन्तमें शुभभावोंसे मरकर वही ग्वालाका जीव राजाधिराज करकंड हुए ! अगाड़ी उनने जाना कि श्रावस्ती नगरीमें (भरहि अत्थि सावत्थिपुर) सागरदत्त सेठ और नागदत्ता
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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