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________________ महाराजा करकण्डु। [३५५ होगा और जब राना करकंडु वहां आकर मंजूषाको खोलेंगे तब वह हाथी सन्यासमरण करके स्वर्गको जावेगा। यह सुनकर वह दोनों राजा उन मुनिराजके निकट दीक्षा ले गये और आयुके अन्तमें अमितवेग तो ब्राह्मोत्तर स्वर्गको गया और सुवेग आर्तध्यानके कारण मरके हाथी हुआ ! अमितवेगके जीव देवके समझानेसे सुवेगके जीव हाथीने सम्यक्त्वयुक्त होकर व्रतोंको ग्रहण किया था। सो वह निरंतर वहां पूना किया करता था। सो हे राजन् ! देवके कहे अनुसार जब तुमने बांबी खुदवाई, तब हीसे यह हाथी समाधिस्थित हो रहा है, यही इस गुफाके सम्बन्धकी कथा है।' इस प्रकार कथा कहकर नागकुमार तो नागवापिकाको चला -गया और राजाने उस हाथीको धर्मश्रवण कराके समाधिमरण कराया, जिससे वह महस्रार स्वर्गमें जाकर देव हुआ। पीछे करकंडुने वहां · पर गुफायें एवं जिनमंदिर बनवा दिये थे। (लयणोवए करकंडुयणु, काराविउ जिणवर वर भवणु)। करकंडु तेरपुरमें जिनमदिर आदि बनवाकर अगाड़ी बढ़ गये और फिर वह सिंहलद्वीप जापहुंचे।' शायद उस समय अपने शत्रुओपर आक्रमण करना उनने मुनासिब न समझा होगा। इसी लिये वहांसे वह सिहलहीपको चले गये थे। वहांके राजाने एक चारण मुनिके मुखसे इनकी बावत पहले ही सुन लिया था। सो उसके सिपाहियोंने इनके आगमनकी सूचना उसे दी थी। (जो भासिउ चारण मुणिवरेण-वरु आयउ णरवइसोभरेण) राजा इनको १-ता एक्वहिं दिणि करकड एण-पुणुदिणु पयाणउ तुरियएण । गउ सिंहलदीवही णिवसमाणु-करकडु णणहिउ परपहाणु ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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