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________________ ३४८] भगवान पार्श्वनाथ । दुःखिनी रानी इसतरह अपने पुत्रको स्वरक्षित स्थानमें छोडकर पामके एक श्रमणोंके नगरमें चली गई और वहां एक आर्यिकाके आश्रयमें रहने लगी। एक दिन उसके साथ जाकर उसने समाधिगुप्त मुनिराजके निकट (णामेण समाहिगुत्तुपरु ) दीक्षाकी याचना की। किन्तु मुनिराजने उसे उससमय दीक्षित नहीं किया और कहा कि 'पूर्वभवमें तूने तीनवार अपने व्रत भंग किये हैं, उनके फलरूप तीन दुःख तुझपर आनेवाले हैं। सो उनका उपशम होचुकने पर तथा पुत्र राज्यका सुख देखकर उसीके साथ तु भी तप धारण करेगी।' यह सुनके पद्मावती उसी साध्वीके साथ रहने लगी। इधर करकंडु वालदेवके यहां दिनोंदिन बढ़ने लगा। उचित कालमें वालदेव विद्याधरने उसे धीरे २ संपूर्ण कलाओंमें चतुर बना दिया! इसपकार करकंडु आदि उस भीम स्मशानमें सुखसे समय व्यतीत करने लगे। ___एक दिन श्री जयभद्र और वीरभद्र नामके दो मुनिरान उस स्मशानमें आकर विराजमान होगये । (ते भीम मसाणयं आय जान) उसममय एक मुटके नेत्रोंमेंसे तीन वांस उगते हये दिखलाई दिये। इसपर किसी साधुने उन आचार्य महाराजसे जिज्ञासाकी कि 'भगवान' यह क्या कौतुक है ? आचार्यने कहा-'इसमें आश्चर्य कुछ नहीं है, इस नगरका जो कोई राजा होगा, इन तीन वांसोंसे उसके अंकुश, छत्र और ध्वजाके दंड बनाये जायगे। उससमय यह बात ____-तादुखीर मणि पोमावइ, समणियर हो गयर हो, खणि गयाइ, समणिरया अज्जियक तिया हे, अछंतियज मलइतावतहिं।-पुण्याश्रवमें गाधारी ब्रह्मचारिणीके आपमें रहने ववाया है। पृ० २१.
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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