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________________ { : महाराजा करकण्डु ' [ ३४३ मेघों को भी सिरज लिया । उस ज़माने में भी पदार्थ विज्ञान इतना उन्नत अवश्य ही था कि आजकलकी तरह कृत्रिम बादल तब भी विद्या बलसे बनाये जा सक्ते थे । मेघोंके आते ही राजाने नर्मदातिलक नामक हाथीको सजवाया और उसपर रानीको बैठाकर वह वनविहार के लिये चल दिया। बातों ही बातों वह बहुत दूर निकल आये और इतनेमें ही हठात् हाथी भी विजक गया । वह राजा - रानीको ले भागा । किसी तरह भी उसने अंकुशको न माना । यही बात मुनि कणयामर कहते हैं: " सो कुंजरूदुडरं चित्तिपहिह भग्गउं जाइ किलिजरहो । ता जणवड धाविड कहेवण पाविज वाहुडिगड सोणियपुर हो । १२ दुष्ट हाथी वेतहाशा भागता ही चला गया । उसने एक गहन वन में प्रवेश किया । राजाने इस समय यही उचित समझा कि यदि मैं इससे बच सकू तो किसी न किसी तरह इसे पकड़वा लूंगा । इसी भावको दृढ करके वह एक वृक्षकी शाखा पकड़कर लटक गये । हाथी उनको छोड़कर भागता ही चला गया । बिचारी पद्मावती रानी उसपर अकेली बैठी रह गई । उसके भाग्य में अशुभ कर्मकी रेखायें खिंच रहीं थीं और वह इस समय पूर्ण फलवती थी । बिचारीको अनायास ही पतिवियोगका कष्ट सहन करना पड़ा। कहा तो प्रसन्नचित्त होकर वनविहार करने निकली थी और कहां यह विरह - दाह उत्पन्न होगया । उसके विवेकने उसे ढाढस बंधाया । ――――― धीरज बाधे वह अपने भवितव्यकी बाट जोहने लगी । हाथी भागता हुआ बढ़ता ही गया । राजा जबतक लौटकर चंपापुर पहुंचे ही पहुचे कि तबतक वह कोसौ दूर चला गया। पता लगाना भी मुश्किल
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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