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________________ सागरदत्त और बन्धुदत्त श्रेष्टि। [३३९ था, उसने जब प्रियदर्शनाको जिनदत्तकी पुत्री जाना तो वह बड़े असमंजसमें पड़गया। जिनदत्तने उसका बड़ा उपकार किया था ! इसलिये प्रियदर्शनाको उसने बडी होशियारीसे रक्खा, और बंधुदत्तको ढूंढनेके लिये आदमी दौडा दिये ! परन्तु बन्धुदत्तका पता न चला। इसी अन्तरालमें प्रियदर्शनाको वहीं एक पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई ! ____ इधर बंधुदत्त अपनी प्रियाके विरहमें व्याकुल हुआ विशालाको जारहा था। वहां उसके चाचा थे; किंतु मार्गमें सुना कि उसके चाचाके कुटुम्बको वहांके राजाने किसी अपराधके लिये बन्धीगृहमें डाल दिया है । बन्धुदत्तके सिरपर आफतका पहाड़ ही टूट पड़ा। उसे उससमय अपने कुतकर्मोके फल पानेका रहस्य समझमें आया ! वह दुःखितहृदय होकर वहासे नागपुरीकी ओर चल दिया, किंतु मार्गमें उसे उसके चाचा मिले और साथ ही अशरफियोंसे भरा 'एक सन्दूक मिला । इसी समय वहाके कोतवालने इनको राज्यकी चोरी करनेकी आशङ्कासे बन्दीगृहमे डाल दिया ! कितु बदीगृहमें पहुंचनेके साथ ही उसके भाग्यने पलटा खाया । राजाकी चोरीका पता चलगया। असली चोर पकडा गया, बन्धुदत्त और उसका चाचा छोड़ दिये गये, वे छुटकारा पाकर अपनी राह लगे। मार्गमे चन्द्रसेनके आदमियोने इन्हें पकड़ लिया। एक आफतसे छूटे तो दूमरीमें फंस गये, परन्तु इसमें उनकी भलाई ही थी। उनका शुभोदय था जो भील उनको पकड़कर चन्द्रसेनके पास ले चले । वहां बन्धुसेनका अपनी प्रिया और पुत्रसे समागम हुआ, वे आनन्दपूर्वक वहासे विदा होकर अपने घर पहुंचे ! सवने वंधुदत्तका बड़ा सम्मान किया और बहुतेरोंने उनकी आत्मकहानी
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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