SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 411
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मक्खलिगोशाल, मौद्गलायन प्रभृति शेष शिष्य । [ ३२९ 'दिव्य उपदेशके प्रभाव अनुरूप हुई थी और मक्खलिगोशालने भी अन्ततः उसका नेतृत्व स्वीकार कर लिया था। इसी कारण बौद्धशास्त्रोंमें उमका वर्णन हमें म० बुद्धके समयमें एक स्वाधीन मतप्रवर्तकके रूपमें मिलता हैं। आधुनिक विद्वान् बौद्धोंके तत्कालीन कथनको उससे पहलेके समयसे भी लागू कर देते हैं, यद्यपि यह ठीक है कि म० बुद्धके धर्मोपदेश देनेके पहले ही स्वतंत्र मतप्रवतक रूपमें वह प्रकट हो गया था । किन्तु इसके अर्थ यह नहीं होसक्ते कि मक्खलि कभी जैन मुनि नहीं था और भगवान महावीरने उससे ही सैद्धातिक विचार करनेकी योग्यता प्राप्त करके एक नया सघ स्थापित किया था, जैसा कि किन्ही लोगोंका ख्याल है। आजीविक सप्रदायका उद्गम जहां जैनधर्मसे हुआ था, वहां उसका अन्त भी जैनधर्मके उत्कृष्ट प्रभावके समक्ष हुआ था । उपरांत कालमें आजीविकोंका उल्लेख दि. जैनोंके रूपमें होता था और वे दि० जैन होगये थे। (हल्श, साउथ इडियन इंसक्रिपशन्स, भा० - १८० ८८ व आजीविक भा० १)। इसप्रकार भगवान पार्श्वनाथजीके तीर्थवर्ती एक अन्य प्रख्यात ऋषिका वर्णन है। भगवान महावीरके सर्वज्ञपद पाते ही वह उनसे विलग होगया था और आजीविक संप्रदायका नेता बनकर परिणामबाद और अज्ञानका प्रचार करने लगा था ! मक्खलिगोशालके अतिरिक्त संजय, विजय और मौद्गलायन नामक मुनि और थे जो भगवान् पार्श्वनाथकी शिप्यपरम्परामें १-भगवान महावीर पृ० १७३ और वीर' वर्ष ३ अंक १२-१३॥ २-दीघनिकाय-मामण्ण फलसुन ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy