SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ] भगवान पार्श्वनाथ । है, क्योंकि जैनाचार्योने चर्मणावती नदीको ही सिंधुनदी माना है; बल्कि इस नामकी एक नदी वहीं मौजूद थी। इसलिये ही इस नदीके तटवर्ती देशको सिंधुदेश जैन शास्त्रोंमें लिखा गया है। गजा चेटककी राजधानी विशालाको भी इसी अपेक्षा सिंधुदेशमें जैनाचार्योंने लिखा है । उज्जयनीका ही दूसरा नाम विशाला __ था। कवि कालिदासने अपने मेघदूत काव्यमें उसीके लिये "विशालां विशालाम्' पदका प्रयोग किया था। इसीपरसे उपरान्तके जैनाचार्योने विशाला (वैशाली ) को सिंधुदेशमें बतला दिया था यद्यपि वास्तवमें वह विदेहदेशमें थी, जैसे कि आज पुरातत्वकी खोजसे प्रमाणित हुआ है । आन भी जैन शास्त्रकारोंकी तरह कतिपय विद्वान् भ्रमसे कवि कालिदासके उक्त पदका प्रयोग वैशालीसे सम्बंधित कर देते हैं: जबकि वास्तवमें वह उज्जयनीके लिये ही लागू है। अतएव इस कथनसे यह स्पष्ट है कि उपरोक्त चण्डप्रद्योत, नो सिंधुप्रदेशके राजा बताये गये है, वही हैं जो उपरान्तमें उज्जयनीके प्रख्यात राजाके रूपमें हमें हिन्दू, बौद्ध और जैनशास्त्रोंमें मिलते हैं । इस उल्लेखसे भी नागकुमारजीका भगवान् १-अस्व. सिन्धो चर्मण्वत्वा । योगिराट:-पार्वाभ्युदयकाव्य टीका। २-भवभूतिका 'मालतीमाधव नाटक'-कनन्धिम जागरफी (नवा संस्करण) नोट पृ० ७२७ । ३-कवि धनपालने अपने 'भविष्यदत्त चरित में इस प्रदेशका सिंधु नामसे उल्लेख किया है-देखो अग्रेजी जैनगजट वर्ष २२ पृ० २४९ पर मेरा लेख । ४-श्रेणिकचरित्र पृ० और उत्तरपुराण पृ० ६.४ । ५-विशाला उज्जयिनीपुरीम् । 'विशालोज्जविनीसमा इत्याभिवानात् योगिराट. श्री पार्श्वभ्युदय काव्य पृ० ९०-९१ । ६-देखो हमारा 'भगवान महावीर' पृ० ६३-६८ । ७-डॉ० वी० सी० लॉने यह पद वैशालीके लिये बतलाया है और उनके अनुसार हमने ऐमा लिखा था।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy