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________________ भगवानके मुख्य शिष्य । [३१५ चिरं मुनिगणैः साकं विहृत्याखंडसंयमेः॥१०॥ धर्मेषु रुचिमातन्वन् दशस्वप्यनिशं जनैः। प्राप्तधर्मरुचिः ख्यातिः सख्यं यत्सर्वजंतुषु ॥ ११॥ अद्य मासोपंवासांते भिक्षार्थ प्राविशत्पुरं । पुरुषाः संहतास्तत्र तत्समोपमितास्त्रयः॥ १२ ॥ नरलक्षणशास्त्रज्ञस्तेष्वेको वीक्ष्य तन्मुनि । लक्षणान्यस्य साम्राज्य पदवीप्राप्तिहेतवः ॥१३॥ अटत्येष च भिक्षायै शास्त्रोक्तं तन्मषेससौ। वदन्नभिहितोन्येन न मृषा शास्त्रभाषितं ॥ १४ ॥ त्यक्तसाम्राज्यतंत्रोयमृषि केनापि हेतुना। निविण्णस्तनये वाले निधाय व्याति निजां ॥१५॥ स्वयं स्वार्थ समुद्दिश्य तपः कर्तुमिहागतः । मंत्रिप्रभृतिभिः सर्वैः कृत्वा तं शंखलात ॥ १६ ॥" यहांपर चम्पाके राजा श्वेतवाहनको अपने विमलावाहन पुत्रको राज्य देकर श्री वीर भगवानके निकट तपश्चरण धारण करते बताया है। उपरांत मुनि भेषमें उन्होंने राजगृहमें लक्षण-शास्त्र-वेत्ताओंके मुखसे अपने पुत्रका मंत्रियों द्वारा राज्यच्युत किया जाना भी सुना था, यह भी उक्त श्लोकोंमें कहा गया है। पूर्वोक्त सुकौशल मुनिवाली कथा भी इसी ढंग की है। इसलिये बहुत सम्भव है कि उपरांत कालके उक्त कथाकारने सुकौशल मुनिकी कथाको विशेषता देनेके लिये चम्पापुरके श्वेतवाहनवाली घटनाको उसमें जोड़ दिया हो ! इसीलिये शायद उन्होंने कौशल देशके राजाका पुत्र सुकौशलको बतलाया है। कौशलके एक राजाका नाम महाकौशल बौद्ध
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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