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________________ [ १] थे तब एक दिगंबर जैन मुनि उनके पास आये थे और उन्हें देव, शास्त्र, गुरुका स्वरूप समझाकर जैनधर्मका श्रद्धानी बनाया था।' 'वामनपुराण में वेणको ब्रह्मासे छठी पीढ़ीमें हुआ बताया है। इससे भी जैनधर्मकी प्राचीनता प्रमाणित है । ' शिवपुराण' में 'अर्हन् । भगवानका शुभ नाम पापनाशक और जगत सुखदायक बतलाया गया है। नागपुराणमें कहा है कि जो फल ६८ तीर्थोके यात्रा करनेमें होता है, वह फल आदिनाथ (ऋषभदेव)के स्मरण करनेसे होता है। इस प्रकार पुराणग्रन्थोंसे भी जैनधर्मकी प्राचीनता स्पष्ट है। इन पुराणों के कथन बहुप्राचीन कथानकोंके माधारपर हैं और उनमें सत्यांश मौजूद है; यह बात आधुनिक विद्वान भी स्वीकार करते हैं ।* १-अ० जैनगजट भा० १४ पृ. ८९-वेणस्य पातकाचारे सर्वमेव वटाम्यहम् ॥ तस्मिन्-छासतिं वर्मज्ञे प्रजापाले महात्मनि । पुरुषः कश्चिदायातो ब्रह्मलिगौधरस्तथा ॥ नग्नरूपो महाकाय सितमुण्डो महाप्रभः । मार्जन शिखिपत्राणा कक्षाया स हि धारयन् ॥ पटमानो मरुच्छास्त्र वेदशास्त्रविदूषकम् । यत्रवेणो महाराजस्तत्रोपायावरान्वित. ॥ अर्हन्तो देवता यत्र निन्वों गुरुरुच्यते । दया वै परमो धर्मस्तत्र मोक्ष प्रदृट्यने ॥ एव वेणस्य वै राज्ञः मष्टिरेव महात्मनः । वर्माचार परियज्य कय पापे मतिर्भवे ॥ R.C. Dutt, Hindu Shastras Pt. VIII. pp. 213-22 २-अ० जनगजट भा० १४ पृ० १६२ हाथीगुफावाले शिलालेखमें जैन सम्राट्के वीरत्वकी उपमा राजा वेग से दी है। इससे भी राजा वेणका जैन होनर प्रगट है। (देखो जर्नल आफ दी बिहार एण्ड ओरिमा रिसर्च सोसाइटी, भा० १३ पृ० २२४ । ३-सत्यार्थ दर्पण पृ. ८९॥ ४-पूर्व प्र. पृ. ८७ यथा -'अक्षप्ठिपु तीर्थेषु यात्रावा यत्फलं भवेत् । आदिनाथस्य देवस्य स्मरणेनापि तद्भवेत् ॥' * Macdonell's History of Sanskıit.
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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