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________________ २३६] भगवान, पार्श्वनाथ । धर्मका अस्तित्व बहुत प्राचीन कालसे है । इसलिये इसमें शका करना वृथा है कि भगवाा पार्श्वनाथका विहार दक्षिण भारतमें हुआ था। उनके वहां पहुंचने के स्पष्ट प्रमाण वहांपरके उनके आगमनके स्मारक स्वरूप अतिशय तीर्थक्षेत्र आज भी मिलते हैं। कलिकुण्डपार्श्वनाथ नामक तीर्थ दक्षिण भारतमें ही है।' इसीतरह भगवानका विहार मध्यभारतमें भी हुआ था, यह उपरोक्त शास्त्र उद्धरणोसे प्रमाणित है। प्राचीन 'निर्वाणशंड' ग.थासे भी यही प्रकट है:पासस्स समवरणे सहिया ग्दत्त मुणिवरा पंच । रिस्सिदेगिरिसिहरे, णिवाणगयो जमो तेसिं !!१९॥ यह रेशिंदेगिरि पन्ना राज्य में है और यहां पहाडीपर चालीस दि. जैन मंदिर हैं। इनके अतिरक्त श्वेताम्बराचार्य भावदेवमूरि भगवान पार्श्वका विहार-वर्णन इस प्रकार करते हैं। वह कहते हैं कि पहले भगवानने गंगा जमनाके किनारेवालों देगोंमें धर्म प्रचार किया और फिर वह पुदेशको विहार कर गये थे। वहांके प्रसिद्ध नगर ताम्रलिप्तिमें उनका विशेष उपदेश हुआ था । उपरांत चारह वर्ष के बाद वे भगवान मध्यमारतकी नागपुरीमे पहुचे थे और यहाँसे उनका आगमन सम्मेदाचल पर्वतपर हुआ बतलाया गया है। यहांपर श्वेताम्बराचार्य ने केवल उन स्थानोंका उल्लेख किया है, जहांपरकी किमी खाम घटनाका वर्णन उनको देना इष्ट है। इस -दि० जैन डायरेक्टरी देखो। २-पायंचरित सुर्गो० २५८ । ३-पृवं. न. ८ श्लो० - ४-पूर्व० सं० ८. श्लो० ५-६ । ५- ८-१९९ :-पूर्व० ८-१।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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