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________________ ज्ञानप्राति और धर्म प्रचार। [२३१ लाट, द्राविड़, काश्मीर, मगध, कच्छ, विदर्भ, शाक, पंचाल, पल्लव, वत्स इत्यादि आर्यखंडके देशोमें भी भगवानके उपदेशसे सम्यग्दशन, ज्ञान, चारित्र र नोकी अभिवृद्धि हुई थी। इस वर्णनमें आये हुए देश भी विशेषकर आजकलके भारतमें ही गर्भित है किन्तु पूर्वोडेखसे इसमें कर्णाटक, कोकण, मेढपाद, द्राविड, काश्मोर, शाक और पल्लव देशोकी अधिक गणना की गई है । कर्णाटक और चौंकण, द्राविड और पल्लव देश तो दक्षिण भारतमें आजाते हैं। मेदपाद-मेद अथवा मेड़लोगोंका निवासस्थान भाजकलका राजपूताना है। यहापर बिनौलिया पार्श्वनाथ नामक अतिगय जैनतीर्थ आज भी मेवाड़ रियासतके अंतर्गत विद्यमान है। यह स्थान भगवान पार्श्वनाथके समवशरणके आनेके कारण ही अतिशयक्षेत्र में परिगणित किया गया है। काश्मीर आजकलका काश्मीर ही हो सक्ता है । यहा भी उस प्राचीन कालमे जैनधर्मका प्रचार हुआ जैनशास्त्रोंसे प्रकट होता है । सिकन्दर आजमके और उपरान्त चीनी यात्रियोके जमाने में जब उत्तर पश्चिमीय सीमाप्रान्तमें एवं स्वयं अफगानिस्तानमे विशाल दि० जैन मुनि मिलते थे तो यह बिलकुल संभव है कि काश्मीरमें भी उनकी गति रही हो ! प्राकृत यह ठीक नहीं मालूम देता कि सीमाप्रान्त और मद्रदेश (मद्रि-पंजाब) में जैनधर्मका बाहुल्य रहते हुये काश्मीर उससे अछूता बच गया हो । अगाड़ी शाक देशका उल्लेख है । इससे १-राजपूतानेका इतिहास भाग १ पृ०२। २-जर्नल आफ दी रायलऐशियाटिक सोसाइटी, जनवरी सन् १८५५ । ३-कनिन्धम, ऐ० जाग० आफ इन्डिया पृ० ६१७।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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