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________________ भगवानका दीक्षाग्रहण और तपश्चरण। [२१५ उस नगरका एक गृहस्थ (Householder) लिखा है। यह कोपकटक नगर आज कलका धन्यकटक नगर अनुमान किया गया है।' इस नगरसे प्रस्थान करके उपरान्त उनका आगमन कालिगिरिके निकट वाले कादम्बरी वनमें होना लिखा है। वहां वे कुन्द नामक सरोवरके तटपर एक जैन प्रतिमाके निकट विराजमान रहे थे । इसी अवसरपर चम्पाके करकण्डु नामक राजाका यहां आना और भगवानकी विनय करना एवं देवोपनीत प्रतिबिम्बके लिए मंदिर बनवा देनेका उल्लेख है । इस कलिकुण्डसे भगवानको शिवपुरी पहुचा बतलाया गया है। जहांके 'कौशाम्ब' नामक वनमें वे कायोत्मगरूपमें विराजमान हुए थे। यहींपर नागराज धरणेन्द्रने आकर भगवानकी पूना की थी और तीन दिन तक उनपर वह छत्र लगाये रहा था, जिससे यह स्थान “अहिच्छत्रके नामसे विख्यात हुआ था यह कहा गया है। यहांसे वे राजपुर पहुंचे जहांके राजाको भगवानके दर्शन करते ही अपने पूर्वभव याद आगए थे। उसने भी भगवानकी विनय की थी और जहांपर भगवान विराजमान थे, वहांपर उसने एक चत्य बनवा दिया था जो कुक्कटेश्वर नामसे प्रसिद्ध हुआ था, यह लिखाहै । उपरान्त भगवान अन्यत्र विचरते बताये गए है और इसी अन्तरालमें कमठके जीवका उनपर उपसर्ग होना कहा है और फिर उनको काशीके दीक्षावनमें पहुंचा बतलाया है। दिगम्बर जैनशास्त्रोंमें यह वर्णन नहीं है और कमठके जीवका दीक्षावनमें उपसर्ग करना लिखा है । अस्तुः इसप्रकार हम भगवानके दीक्षा ग्रहण करनेके अवसर और तपश्चरण करनेका दिग्दर्शन कर लेते हैं। १-बगाल, विहार, ओड़ीसा जैन स्मार्क पृ० ७९ । २-भावदेवमूरि पार्श्व०- सर्ग ६ श्लोक १२०-२१४ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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