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________________ २०४] भगवान पार्श्वनाथ । होगया है और हमारी लोकलज्ना क्या है ? जैन शास्त्रोंमें भगवानके विषयमें ऐमा ही वर्णन मिलता है।' एक रोन यौवन पम्पन्न राजकुमार पावको देखकर उनके पिताको पुत्रके विवाह करने की सुब आई । सचमुच भारतीय मर्यादाके अनुसार पहले ब्रह्मचर्य आश्रममें पूर्ण दक्षता प्राप्त कर चुकने पर और युवा होमाने पर ही लोग गृहस्थाश्रममें प्रवेश करते थे । आनकलकी तरह नन्हें २ बालकोंके विवाह उस जमाने में नहीं होते थे अनमेल और वृद्ध विवाहों का भी अस्तित्व उसममय इस घरातलपर नहीं था. क्यों के लोग गृहस्थ आश्रमका उपभोग करके वानप्रस्थ आश्रमका अभ्यास करने लगते थे। इसप्रकारके नियमित और संयमी सामानिक वातावरणमें ही आर्यसंतान फल फूल रही थी और संपारभरमें वह अपनी समानतामें एक थी। उसी पुरातन आदर्श आर्य जनताके गुणगान आन भी सारा संसार मुक्तकंठसे करता है किन्तु उन्हींको संतान आनके भारतीयों को कोई कौड़ी मोल नहीं पूंछा ! आर्यवंशन होते हुये भी वह अपने पूर्वजोंकी यादाको लांछित बना रहे हैं। सचमुच जबतक भारतीय ममानका मामानिक जीवन प्राचीन आदर्शनीवन नहीं बन जायगा तबतक उसकी उन्नति होना अशक्य है। भगवान पार्श्वनाथके भक्त जैनी भी आज अपने पूर्व नोंके आदर्शनीवनसे कोसों दूर है; यही कार, है कि उनके जीवन हीन और संकटापन्न बन रहे हैं। विवाह नियमशी अवहेलना वह बुरी तरह कर रहे हैं। बाल, अनमेल और वृद्धविवाह जैसी कुप्रथाओं, उनमें बहु प्रचार है । जहां १-पार्श्वनायचरित ५० १६६-३६७ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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