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________________ २०२१ भगवान पार्श्वनाथ | | देशका रूपान्तर ही है और पणिक एवं पणिका स्पष्टत. पणिक जातिकी अपेक्षा है । पहले कुल और जाति अपेक्षा भी लोगोंक -नाम रक्खे जाते थे, यह हम देख चुके हैं । अतएव इस कथा के पणिकमुनि पणिक जातिके ही थे, यह स्पष्ट है। इस कथासे पणिकोंका व्यापारी होना तथा भगवान महावीरस्वामीके समय विदेश से आना भी प्रगट होता है. क्योंकि यदि वह व्यापारी न होते तो उनका सेठरूपमें लिखना वृथा था और वह यहां अपनी जाति अपेक्षा प्रख्यात हुये, यह उनका विदेशी होनेका द्योतक है । यदि - वह यहीं के निवासी होते तो उनकी प्रख्याति जाति अपेक्षा न होकर - दीक्षित नामके रूपमे होना चाहिये थी । अस्तु; पणिक या फणिक जातिकी अपेक्षा इस जातिके राजा फणीन्द्र भी कहलाते थे और यह मनुष्योंक्के नागलोक में रहते थे, इसलिये नागकुमारोंके इन धरणेन्द्रका उल्लेख सदृशताके कारण फणीन्द्ररूपमे हुआ मिलता है। यहापर यह दृष्टव्य है कि पहले विदेशी लोगोंको जैनधर्म धारण करने और मुनि होकर मुक्तिलाभ करनेका द्वार खुला हुआ था । मूलमें जैनधर्मका रूप इतना संकीर्ण नहीं था कि वह एक नियमित परिधिके मनुष्योंके लिये ही सीमित होता । अस्तु, । इस प्रकार भगवान पार्श्वनाथके शासनरक्षक देवता घरणेन्द्र और पद्मावती एवं उनके अनन्यभक्त अहिच्छत्र के नागवशी राजाका विशद परिचय प्रगट है और उनका निवासस्थान पाताल कहां था, - यह भी स्पष्ट होगया है । अतएव आइए, पाठकगण अब अगाड़ी भगवान पार्श्वनाथ जीके शेष पवित्र जीवनके दर्शन करके अपनी मात्माका कल्याण करलें ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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