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________________ २००] भगवान पार्श्वनाथ । और श्रमण धर्मके नामसे जैनधर्म भी परिचित है । ( कल्पसूत्र पृ० ८३ ) इप्सलिये तातार लोगोका मूलमें जैनी होना भी संभव है । तिसपर ईरान और अब तो तीर्थ रूपमे आज भी लोगोके मुंहसे सुनाई पड़ते हैं। श्रवणबेलगोलके श्री पंडिताचार्य महाराजका कहना था कि दक्षिण भारतके जैनी मूलमें अरवसे आकर वहां बसे थे। करीब २५०० वर्ष पूर्व वहाँके राजाने उनके साथ घोर अत्याचार किया था और इसी कारण वे भारतको चले आये थे। (देखो ऐशियाटिक रिसर्चन भाग ९ १० २८४ ) किन्तु पडिताचार्यनीने इस राजाका नाम पार्श्वभट्टारक बतलाया एवं उसी द्वारा इस्लाम धर्मकी उत्पत्ति लिखी है वह ठीक नहीं है । 'ज्ञानानंद श्रावकाचार'मे भी मकासे मस्करी द्वारा इस्लाम धर्मकी उत्पत्ति लिखी है, वह भी इतिहास वाधित है। किन्तु इन उल्लेखोंसे यह स्पष्ट है कि एक समय अरबमें अवश्य ही जैनधर्म व्यापी होरहा था। इस तरह ईरान, अरब और अफगानिस्तानमें भी जैनधर्मका अस्तित्व था; बल्कि दधिमुख द्वीपमे चारणमुनियोंका उपसर्ग निवारण स्थान तो ईरानमें ही कहींपर था, यह हम पहले देख चुके है । मध्यएशियाके अगाडी मिश्रवासियोमें तो जातिव्यवस्था भी मौजूद थी, जो प्रायः क्षत्री, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र और चण्डालरूपमें थी। इसलिए इन लोगोको अनार्य कहना जरा कठिन है। हां, पातालवासी उपरोक्त काश्यपवंशी जातियोंके विषयमें यह अवश्य है कि बडे२ युगोंकि अन्तरालमें और अपने मृल देश विजयाघको छोड़कर चल निकलनेपर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावके प्रभाव अनुसार यह अपने प्राचीन रीतिरिवाजोंको पालन १-राइस, मालावर क्वार्ट रिव्यू भाग ३ और इन्डियन मैक आफ नोट। २-स्टोरी आफ मैन पृ० १८८ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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