SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२०] . अब यदि ब्राह्मण साहित्य पर दृष्टि डाली जाय तो प्रगटतः उसमें भी जैन व्याख्याको विश्वसनीय वेदोंमें जैन उल्लेख ! बतलाया हुआ मिलता है। ब्राह्मण साहि त्यमें सर्व प्राचीन पुस्तकें वेद माने गये हैं और इनमें ऋग्वेद संसार भरमें सर्व प्राचीन पुस्तक बतलाई गई है। अतएव यहाँपर हम पहले इन वेदोंमें ही जैन उल्लेखोंको देख लेना उचित समझते है। यह प्राय सबको ही मान्य है कि जैनिबोके आप्तदेव 'अहंत्' अथवा 'अर्हन्' नामसे परिचित है। सिवाय बौद्धोंके और किसी भी मतने इस शब्दका व्यवहार नहीं किया है किन्तु बौद्धोके निकट भी इसके अर्थ एक आप्तदेवसे नहीं हैप्रत्युत उनके एक खास तरहके साधुओंका उल्लेख 'महतु' रूपमें होता है। अतएव जैनियोंके ही 'उपासनीय आप्त अहेन' नामसे उल्लेखित मिलते है और इन्हीं 'महन का उल्लेख ऋग्वेद संहिता (अ० २ व० १७)में हुआ है। कालीदासनीके 'हनूमान नाटक' [अ० १ श्लो० ३)में भी यही कहा गया है कि 'अर्हन' जैनियोंके. उपासनीय देव है। अगाड़ी ऋग्सहितामें (१०११३६-२) मुनयः सातवसनाः रूपमें भी दिगम्बर जैन मुनियों का उल्लेख मिलता है। डॉ० अलबेट वेबरने वेदके यह शब्द जैन मुनियों के लिये व्यवहृत ये स्वीकार किये हैं। ३ अषम, मुपार्य, नेमि आदि नाम - १-पूर्व प्रमाण । -मेक्षमूलर द्वाग सम्पादित, स्टन १८५४की जसी, मा० २ प० ५७९ । ३-इन्डियन एण्टीक्वरी मा० ३० १९०१ और जिनेन्द्रमत दर्पण पृ० २१ । ४-ऋग्वेद १०-३, ६-७, ३८-७ । न्यजर्वद- सुपावमिन्द्रहा। :-वाजस्यनु प्रसव आवभूवना च विअभवनानि सर्वत । मनमिराजा परियात्ति विद्वान् प्रजा पुष्टि वानमानो -अस्मम्वाहा ॥-१० म० २५ ॥
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy