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________________ नागवंशजोंका परिचय ! श् [ १९१ सिद्ध शब्द से मिल जाती है । इस शब्दका भाव मिश्रवासियोंके निकट परमात्मा (Superme Being) से था, यह हेला निकस नामक ग्रीक विद्वान् बतलाता है ।" इसतरह हमारे ख्याल से मिश्रके तीन देवता सिद्ध, साधु और अरहंत ही हैं । होरस ( Horus) की जो एक मूर्ति देखने में आई है, वह भी इस व्याख्याका समर्थन करती है । वह बिल्कुल नग्न खड्गासन है; शीशपर सर्पका फण है जैसा कि जैन तीर्थंकर पार्श्व और सुपार्श्वकी मूर्तियो में मिलता है; किन्तु जैनमूर्ति से कुछ विलक्षणता है तो सिर्फ यही कि उसके ! दोनो हाथों मे दो २ सर्प और एक कुत्ता व एक मेंढा है तथापि ' वह मगरमच्छ के आसनपर खड़ी है । वैसे मूर्तिकी आकृति से भयकरता प्रकट नहीं है, प्रत्युत गभीरता और शांति ही टपक रही है | यहापर सर्पो आदिको हाथोंमें लिये रखने से गुप्त संकेत रूपमें (Hıe1ate Symbols) इन देवताके स्वरूपको स्पष्ट करना ही इष्ट होगा । चार सर्पोंसे भाव अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य से होसक्ता है; क्योकि सर्पको मिश्रवासियोंने बुद्धि और स्वास्थ्यका चिन्ह माना था । इसी -तरह कुत्ते और मेंढेका कुछ भाव होगा । साराशत होरसकी मूर्ति भी जैन मूर्तिसे सदृशता रखती थी। वह मूलमें नग्न थी, जो मोक्ष प्राप्तिका मुख्य लिङ्ग है । प्राचीन और जैन मूर्तियोंकी आकृति श्री मिश्र के मूल निवासियों (Negro ) से मिलती हुई अनुमान की - गई है । किन्हीका कहना है कि एक कुटिलकेश नामक नीग्रो 3 १ - ऐशियाटिक रिसर्चेन भाग ३ ० १४१ २-दी स्टोरी ऑफ मैन पृ० २१० ३ - ऐशियाटिक रिसर्चेन भाग ३ पृ० १२२-१२३ 1
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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