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________________ - 3 नागवंशजोंका परिचय | [ १८७ केवल एक ही स्वतंत्र व्यक्ति नहीं था अर्थात उनके निकट अनेक परमात्मा थे ।' मिश्रवासी आत्माका अस्तित्व भी स्वीकार करते थे और उसका पशुयोनिमें होना भी मानते थे । उसके अमरपने में भी विश्वास रखते थे । यह सब मान्यतायें बिलकुल जैनधर्मके समान हैं । भगवान मुनिसुव्रतनाथ और फिर भगवान नमिनाथके तीर्थोके अन्तरालमें यहां जैनधर्मका विशेष प्रचार था, यह जैनशास्त्रोसे प्रकट है । तथापि यूनानवासियोकी साक्षीसे मिश्र के निकटवर्ती अवेसिनिया और इथ्यूपिया प्रदेशो में जैन मुनियोका अस्तित्व' आजसे करीब तीन हजार वर्ष पहिले भी सिद्ध होता है । इस दशामे उक्त सादृश्यताओको ध्यानमे रखते हुये यदि यह कहा जावे कि मूलमें तो मिश्रवासियों का धर्म जैनधर्म ही था, परन्तु उपरांत अलंकारवादके जमानेकी लहर में उसका रूप विकृत होगया था तो कोई अत्युक्ति नहीं है । यह विदित ही है कि मिश्र, मध्य एशिया' आदि देशोमें अलंकृत भाषा और गुप्तवाद (Allegory) का प्रचार होगया था और धर्मकी शिक्षा इसी गुप्तवादमे दी जाती थी । * मिश्रवासियोकी अलकृत भाषा और उनकी गुप्त बातें (Mystries) बहु प्राचीन हैं । इन गुप्त बातोको जाननेके अधिकारी मिश्रमें पुरोहित और उनके कृपापात्र ही होते थे । यह पुरोहित बड़े ही सादा मिजाज़ और सयमी होते थे । यह साधारण लोगों को ऐसी शिक्षा देते थे जिससे उनको अपने परभव और पुण्य - पापका भय १ - मिस्ट्रीज ऑफ फ्री मेसनरी पृ० २७१ २ - दी पृ० १८७ ३ - ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ० ६ कान्फल्यून्स ऑफ ऑपोजिट्स पृ० १-६ ५-दी स्टोरी १७३ ६-७ - पूर्व० पृ० १९१ ४ स्टोरी ऑफ मैन – सपलीमेन्ट टू ऑफ मैन पृ० ›
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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