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________________ १७४] भगवान पार्श्वनाथ । शास्त्रोंक अनुसार अवेसिनिया और इथ्यूपिया बहिर कुगद्वीपमें आ जाते हैं।' इस कुशद्वीपमें वह एक कुशम्तंभ और दैत्य, दानव, देव, गंधर्व, यल, रक्ष और मनुष्योका निवास बतलाते हैं। मनुष्योमें चतुर्वर्ण व्यवस्था भी थी, यह भी वह कहते हैं। इसी कुशद्वीपमें यादवोंका आगमन कृष्णके बाल्यकालमें कंसके भयके कारण बताया गया है। कहा गया है कि वे भारतवर्षसे निकलकर अवेसिनियांके पहाड़ोंपर आकर रहने लगे थे। उनके नेता यादवेन्द्र कहलाते थे। सो उन्हींकी अपेक्षा यह पर्वत भी इसी नामसे प्रसिद्ध हुये थे। प्राचीन इथ्यूपियन निवासियोंके स्वभाव आदि इन यादवों जैसे ही थे और ग्रीक भूगोलवेत्ता भी उनका आगमन वहां भारतवर्षसे हुआ बतलाते हैं। जैन हरिवंशपुराणके कथनसे भी इस व्याख्याकी पुष्टि होती है। यद्यपि वहां कृष्णसे बहुत पहले उनका आगमन यहां बतलाया गया है। वहां कहा गया है कि २१ वें तीर्थकर श्री नमिनाथनीके तीर्थ में यदुवंशी राजा शूर थे। इन्होंने अपना मयुराका राज्य तो अपने छोटे भाई सुवीरको दे दिया था और स्वयंने कुशद्य देशमें परमरमणीय एक शौर्यपुर नामक नगर बसाया था। आजकल शौर्यपुर मयुराके पास ही माना जाता है। पतु यह ठीक नहीं है क्योकि मथुराके आसपासका देश 'कुशद्य' नामसे कमी प्रख्यात् नहीं था। भारतमें कुशस्थल देशको कौशल किन्हीं शास्त्रों में बताया हुआ मिलता है, किन्तु वहांभी शौर्यपुर १-पूर्व पृ० ५५ । २-३-विष्णुपुराण २-४ ३५-४ । ४-५-ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ० ८७ । ६-रिवशपुराण प्र० २०४ । --मावदेवसरि, पार्श्वनाथचरित्र सर्ग ५ में कुशस्पलके राजा प्रसेन
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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