SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नागवशंजोंक परिचय। [१७१. (Pliny) बतलाता है कि मेसफीस (Mesphees) नामक मिश्रके एक प्राचीन राजाने यहांपर दो चौकोने स्तंभ (Obsliks) वनवाये ये और उससे पहलेके राजाओंने यहां अनेक किला आदि बनवाये थे। यह स्थान अन्तरीय कुशद्वीपके किनारेपर' अवस्थित 'त्रिशृङ्ग' अर्थात् तीन कूटवाले पर्वतसे हटकर नीचेमें था । जैन शास्त्र राक्षसद्वीपमें तीन कूटवाला त्रिकूटाचल पर्वत बतलाते हैं; उसकी तलीमें लकापुरी कहीं गई है । हिन्दू और जैन शास्त्रकारोंके बताये हुए नामोंसे किञ्चित अन्तर आना स्वाभाविक ही है; किन्तु उपरोक्त सादृश्यताको ध्यानमें रखते हुये राक्षसद्वीप और लंकाका मिश्रमें होना ठीक जंचता है। वैसे भी लोक व्यवहार में लंका 'सोने' की मानी जाती है और मिश्रके प्राचीन राजाओंकी जो सोनेकी चीजें अभी हालमें भूगर्भसे निकली हैं, वह इस जनश्रुतिको सत्य प्रकट करती हैं । तिसपर जैनशास्त्रमें जो लंकाके पास कमलोंसे मंडित कई उद्यान और वन बतलाये हैं; वह भी यहां मिल जाते हैं। मिश्रका ऊर्ध्वभाग, जिसमें कि अलेकजन्ड्यिा आदि अवस्थित हैं इन्ही वनोंके कारण 'अरण्य' अथवा 'अटवी' के नामसे ज्ञात था। सचमुच पहले नील (Nile) नदीका यह मुहाना गहन वनसे भरा हुआ था और यूनानीलोग • उसे अपनी देवीका पवित्रस्थान (Sncred to the Godess Diana) मानते थे। उनका यह मानना एक तरहसे है भी ठीक क्योंकि महासती सीताके निवासस्थानसे यह वन पवित्र होचुके थे। १-पूर्व० पृ. १८९। २-पूर्व० पृ० १५४ । ३-माडनरिव्यू Vol XL. ४-ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ. ९७ । ५-पूर्व० पृ० १६४।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy