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________________ । था। १६६] भगवान पार्श्वनाथ । था । इसी समय अपने मामाके यहां हनुरुहहीपमें जन्म पाकर बड़े हुये हनूमान भी लका आये थे । वीची पर्वत इनको मार्गमें पड़ा था । उपरान्त वह समुद्रको भेदकर वरुणके नगरपर पहुंचे थे । युद्धमें वरुण पकडा गया था। वहाके भवनोन्माद वनमें रावणने डेरा दिये थे और उसकी सत्यवती कन्याको परणा था । हनूमानको रावणने अपनी घेवती विवाही थी और उसे कर्णकुण्डलपुरका राज्य दिया था। लंकामें लौटकर शांतिनाथनीके चैत्यालयकी वंदना कर रावण आनन्दसे रहता था । उपरांत सुकौशल देशकी राजधानी अयोध्यामें इक्ष्वाकवंगी राजा दशरथ राज्य करते थे। इन्हीके समयमें अर्घ बरबर देशके म्लेच्छोंने भारतवर्षपर आक्रमण किया था। अर्धवरवरदेश वैताज्यके दक्षिण भागमें और कैलासके उत्तरमें अवस्थित अनेक अन्तर देशोंमें एक था । यहां मयूरमाला नगरका राजा म्लेच्छ अन्तर्गत नामक या । कालिद्रीभागा नदीकी ओर यह विषम म्लेच्छ थे। इनके साथ किरात, भील आदि थे । इन म्लेच्छोमें श्याम, कर्दम, ताम्र आदि वर्णके लोग थे तथा कई एक वृक्षोंके वल्कल पहिने हुए थे। दशरथ जनक, राम और लक्ष्मणने इनको हराया और यह विन्ध्याचल मादि गहन स्थानोमें वस गए। राम जब वनवासके दिन काटते हुए दक्षिण भारतमें पहुंचे, तो वहां इन्होको उनने परास्त किया था। उपरांत दंडकवनसे रावण सीताको हर लेगया था। इधर खरदूषगका पुत्र अज्ञात लक्ष्मणके हाथसे मारा गया था; सो खरदूषण इनपर चढ़ आया था। आखिर इस युद्ध में वही काम आया था। चन्द्रोदयके पुत्र विराधित विद्याधरके कहनेसे राम-लक्ष्मण पाताल
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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